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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बाबस आजु भावतो करत सौज बाबकी । " उदा० १. बोर्यो बंस बिरद मैं जत मेरे बार बार बार जानि । - बाबस- - क्रि० वि० [सं० बल + वश, बाबस] बलात्, बलपूर्वक, जबरदस्ती । उदा० दे गए चित्त मैं सोच-विचार, सु लै गयेनींद छुधा बल बाबस । —देव बार - संज्ञा, पु० [सं० द्वार] १. २. कंघी । द्वार, दरवाजा २. बार न कीन्ही पली ग्राह ते बारन बारन कीन्हीं । बारबधुटी - संज्ञा, स्त्री० [सं० ङ्गना, वैश्या । www.kobatirth.org ( १६९ Į बालक ऐसो काम - रघुनाथ प्रा० बौरी भइ बरबीर कोई पैठो - देव २. बारन बार सँवारि सिंगारत, मोतिन हार धरै तन गोरें । - मतिराम - बारकसी — संज्ञा, स्त्री० [फा० बारकसी] घोड़े का एक साज, २. भारवाहन; बोझ ढोना । उदा० सबही पर माहिर जटित जवाहिर होती जाहिर बारकसी । बारगाह- -संज्ञा, स्त्री० [फा०] २. ड्योढ़ी । उदा० किंकिनी की धुनि तैसी पद्माकर डेरा, खेमा, तंबू, नूपुर निनाद सुनि सौतिन के बाढ़त विषाद बार गाह की । -उदयनाथ बरना क्रि० स० [सं० बारण] १. मना करना, २ छुड़ाना, मुक्त करना, रोकना 1 उदा० १. वह सुनि हे ऐहै देहे गारि चारि नैकु नूपुरनि बारि नारि नंद के बगर मैं । -संज्ञा, पु० [सं०] हाथी का २२ - श्रालम भरि की हरि, बेनी प्रवीन बारवधू] बारा - - उदा० त्यों न करे करतार उबारक ज्यों चितई वह बारबधूटी । - केशव बारलाक- - वि० [अ० बर्राक] उज्ज्वल, शुभ्र धवल, चमकीला, जगमगाता हुआ । उदा० ताग सो तपासो बारलाक सो लुकंजन सो छिद्र कैसो छन्द कहिबे को छलियतु है । बलभद्र मिश्र बाल - संज्ञा, पु० [सं० बालक] पोच वर्ष का हाथी का बच्चा । उदा० उरभि उरभि गिरि भाँख रहे भाखरनि, बेलिन में बाँधे सृग बाल बिड़ बावरनि । गंग बच्चा २. - ) बाहनि मोथा वा जल पौधे । उदा० बालक मृणालनि ज्यों तोरि डारे सब काल कठिन कराल त्यों अकाल दीह दुख को । - केशव Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir --- २. लौंग फूल दल सेवट लेखौ । एल फूल दल बालक देखो | -केशव बाला - वि० [फा०] १. जो ऊपर की ओर हो, ऊँचा २ एक वर्णवृत्त ३. मार्या, पत्नी ४. हाथ में पहनने का कड़ा ५ देवी ६. स्त्री । उदा० १. संग सखी परबीन प्रति प्रेम सों लीन मनि ग्रामरन जोति छबि होति बालाहि । ५. कोटिक पाप कटे बिकट, आजु सुफल मानो जनमु लखि - वासवगीय संज्ञा [स०]धूटी नामक एक बरसाती कोड़ा | 7 -दास सटके दुख अकुलाइ । बाला के पाइ । - सोमनाथ उदा० गोपसुता बन बासव गोप ज्यों, कारी घटानि फिरें भटभेरं । -देव बाह - संज्ञा, पु० [सं०] अश्व, घोड़ा । उदा० कहूँ देत बाह के प्रवाह उदावत राम, कहूँ देत कुंजर धजानि धूरि धूसरे । -गंग बाहकी संज्ञा स्त्री० [सं० वाहक + ई (प्रत्य०)] कहारिन, पालकी ले जाने वाली स्त्री । 3 उदा सजो बाहकी सखी सुहाई । लीन्ही शिविका कंध उठाई | रघुनाज बीसबिसे–क्रि० वि० [देश० ] बीसोविस्वा २. निश्चयपूर्वक उदा खेलिबोई हँसिबोई कहा सुख सों बसिबो बिसेबीस बिसारो । - देव बासा - संज्ञा, पु० [?] एक पक्षी । उदा० बासा को गर्ने न कछु जंग जुरै जुर्रन सों, बाजो-बाजी बेर बाजी बाजहू सौं ले रहे । - -पद्माकर बाहनि संज्ञा, पु० [सं० प्रवाह + हिं० प्रवाह, धारा । For Private and Personal Use Only बाहना क्रि० स० [सं० वहन] फेंकना, चलाना, डालना छोड़ना, ढोना, लादना । उदा० बान सी बुंदन के चदरा बदरा बिरहीन पै बाहत श्रावें । - - पद्माकर न प्रत्य० ] उदा० तकि मोरनि त्यों चख ढोर रहे, ढरि गौ हिय ढोरनि बाहनि की । -घनानन्द -
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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