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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra फैल www.kobatirth.org ( मुसुक्याय आई जामन लेन तिय नेहै गई जमाय । - बिहारी फैल - संज्ञा, पु० [फा० फेल] कार्य, काम । उदा० सॅल तजि बैल तजि फैल तजि गैलन में, हेरत उमा कों यों उमापति हितै रहें । - पद्माकर नग थरहरान । लाइयो निदान । मनु नचत शैल । लखि ईसफैल | १६० - सोमनाथ फेंक - संज्ञा, पु० [सं० पुंख] तीर के पीछे की नोक, जिसके पास पंख लगाये जाते हैं । तीर का दूसरा किनारा । उदा० बिरहा हनी फोक फबी उत हृ प्रगटी -श्रलम बटक ] १. गेंद ) - आलम इत ह्र' मानो बान अनी । रोदे फोंक जमाय, चाप संजित करि सोई । - चन्द्रशेखर फौंकनी - संज्ञा, स्त्री० [देश ] छोटी लाठी, लकुटी । उदा बाँस की फौंकनी हाथ में धारे जू, के गारे, कहावें कन्हइया । फौरी - क्रि० वि० [फा० फौरन ] फौरन । उदा० दुज फौरी ले अँगुछा फेरत । कृष्ण कृष्ण प्रेमातुर टेरत ॥ बंध - संज्ञा, पु० [?] बराबरी, समता । उदा गहि कोमलता सरसता, सोनो होइ सुगंध तबहूँ कबहूँ होइ सीख तेरे तनु को बंध । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बई -मतिराम बेरिन बंगे बंगे - वि० [सं० वक्र] वक्र, टेढ़ा उदा० रन करत अड़ गे सुभट उमंगे करि झपट । बंज - संज्ञा, पु - पद्माकर बन्धु- संज्ञा, पु० [हि० बंधुआ ] कैदी, दास गुलाम । [ सं वणिज् ] व्यापार, उदा० बंधु किए मधुप मदंध किए बंधु जन बँध्यो मन गंधी की सुगंध भरपन सों कीजियौ देव वाणिज्य । उदा० रूप बजार में प्रीति को बंज न ---पद्माकर कोऊ कियें अकुलै हौ । बंछना क्रि श्र० [सं० वंचन] वंचित करना, ठगना, धोखा देना । उदा बनितादिक मुद्दित उद्दित रूप तें बंछति आनन्द चन्द सुधा को । बंटन -संज्ञा, पु. [ सं २. गोला । उदा० डीठि डीठि क़ी बरत को झेलें । इनको मन दोऊ नट से खेलें । - बकसी हंसराज बंदनी -संज्ञा, स्त्री [हि० बंदी] बंदी, एक आभूषण जिसे स्त्रियाँ सिर पर पहनती हैं । उदा० मोतिन के छरे परे कानन में सानदार हीरन के हार बेना बंदनी सुरुच की 1 बाँधि के दृग बंटन उनको मन बीचहि ग्वाल बंधुर - वि० [ सं ] सुन्दर, रचिर । उदा० भूषित गजगाहन उठत बाहन लसत भले । बंबी – संज्ञा, स्त्री, [अ० उदा आगे चलि नृप बंबी तहाँ इक पेखी । बंसकार - संज्ञा, पु० [सं० बंशफोर । उदा श्रौरो एक राम | वहाँ धाम । For Private and Personal Use Only रूप -नागरीदास शीघ्र, -नागरीदास उमाहन बंधुर —पद्माकर मंबा ] सोता, स्रोत । देखी । परबत गुफा - जसवंत सिंह वंश + कार ] डोम, कथा कहीं, विकल भूप की प्रयोध्या वसत है बंसकार के - केशव बदरी — संज्ञा, स्त्री० [बुं०] गाय विशेष । उदा० बँदरी को है बच्छरा दुबरो चोखन श्राछे दीजो | बकसी हंसराज बई - वि० [हिं० बाय ] पृथक्, अलग-अलग । उदा० १ चौंकि चौंकि चकि चकि, उचकि उचकि देव जकि जकि, बकि बकि परत बई बई । —देव
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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