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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -गंग नेल ( १४२ ) नोमु उदा० १. घोर लगै घर बाहिरहू डर नूतन नूत। उदा० १. हुक्का बाँध्यो फेट में नै गहि लीन्हो दवागि जरे से । हाथ । चले राह में जात हैं लिए तमाकू २. प्राजु गोपाल जु बर-बध सँग नतन नत । साथ । -गिरधर कविराय। निकुंज बसे निसि । देव २. किते न औगुन जग करत, नै बै चढ़ती नृत निसान दिसान मनौखर, सान कुसुम्म बार । -बिहारी धरे सर पैना। -बेनी प्रवीन नैची-अव्य० [हिं० नीचे] नीची, नीचे की नूल-वि० [सं० नवल] नवल, नवीन । ओर। उदा० भुवभार उतारन जाँचे विधि ने, तुम जग | उदा० त्यों पद्माकर पाट पै पाय दै नीर निहारक्षा काजै । तब उदित भये जदुकुल में रत, नार के नेची । सूरज नूल तेज को साजे । - सोमनाथ नैठन-संज्ञा, पु० [हिं० नाटना] भगोड़े, कायर, नेग-संज्ञा, पु० [सं० नैयमिक] बाँट, हिस्सा । | डरपोक । उदा० मन तौ मनमोहन के सँग गौ, तन-लाज ! उदा० राजन की राजरानी डोली फिर बनबन मनोज के नेग परौ। --द्विजदेव नैठन की बैठे बैठे भरें बेटी-बहू जू । नेज-संज्ञा, स्त्री० [?] लग्गी, बाँस की वह लग्गी जिससे पतंग आदि छुड़ायी जाती है। नैत-संज्ञा, स्त्री० [सं० नेत्र] एक प्रकार का उदा० जीवन मूरि सी नेज लिए इनहूँ चितयो महीन रेशमी वस्त्र ।। उनहूँ चितई री। रसखानि | उदा० दिन होरी खेल की हराहर भरों हो नेठ-संज्ञा, पु० [सं० नष्ट, हिं० नाठ] १. सुतौ, भाग जागें सोयौ निधरक नैत ढापि नष्ट, ध्वंस, नाश, २. अमाव । कै। -घनानन्द उदा० १. मानत हे प्यास ग्रौ न जानत हे भूख ओबरि जुड़ि तहाँ सोवनारा । अगर पोति मटू मानत हे संका धाम की न काम नेठ सुख नेत अोहारा । --जायसी की। -रघुनाथ नैर-संज्ञा, पु० [हिं० नगर] नगर, शहर । नेत-वि० [सं० नियत] स्थिर, अचंचल । उदा. मेरे कहे मेरे करु सिवाजी सों बैरि करि, उदा० दोष मैं निहारि गुन दोष कामना करत, गैर करि नैर निज नाहक उजारे तै । या विधि अनुज्ञा बरनत मति नेत हैं। -भूषण भहराय भगै धर लोक महामय सून भय नेर -अव्य० [सं० निकट, हिं० निर] निकट, अरि नैर सहू। -मानकवि पास, नजदीक । नैऋत्य-संज्ञा, पु० [सं० नैऋत्य] राक्षस । उदा० कैसे री सुपानन पै नैन किये डेरे जैसे उदा० जार्यो शर पंजर छार करो । नैऋत्यन नॅदनंदन निहारे प्राय नेरे हैं। -पजनेस को अति चित्त डरो। --केशव नेव--संज्ञा, पु० [फा० नायब] सहायक, नायब । | नैस-वि० [देश॰ नैसुक नैस] थोड़ा, लेशमात्र। उदा० जहाँगीर को पंजा लेव । राजा कों मिल- उदा० मालम बिहात छिन जानो जात कोटि वी करि नेव । --केशव दिन, कौन रैन की समाई सुरति न नैस नेवर-संज्ञा, पु० [सं० नूपुर] पैर में पहने जाने -मालम वाला एक भूषण, पैजनिया । मोवन-संज्ञा पु० [सं०] चाबुक, बैलों के हाँकने उदा० सुनि के नेवर की धुनि सजनी देवर रिस का कोड़ा। कर धाये। -बकसीहंसराज उदा० रतिजय लेखिबे की लेखनी सुलेख किंधौं, नेवाती-संज्ञा,पु० [निवात-कवच] कवच धारी, मीनरथ सारथी के नोदन नकीने हैं। लड़ाई के लिए प्रस्तुत योद्धा । -केशव उदा० चाहतें सलाह करि नेवाती-नितंबं प्रव, नोमु-संज्ञा, स्त्री० [सं० नव] एकतिथि, नवलूट्यो लंक पुर चढ़ि बढ़ि तजि त्रास सी । रात्र वाली नवमी,। दास | उदा० बलिपसु मोद भयो बिलपनि मंत्र ठयो, मै--संज्ञा, स्त्री [फा०] १. हुक्के की निगाली अवधि की पास गनि लयो दिन नोम हैं। २. नदी [प्रा० नय] ३. नीति । --दास -दूलह For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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