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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -पालम नजूमि ( १३४ ) नमूद कविता करत हौ कि समुद्रिक संचारी जू । | ननकारना क्रि० अ० [हिं० न+करना इनकार -नंदराम करना, अस्वीकार करना । नजमि-संज्ञा, पु० [अ० नजमी] ज्योतिषी। । उदा० अधखुले नैननि निहारै रूप भावते को बिहसै उदा० नेकु सुनो बतियां न छतियां चलये हाथ बिहारै 'ननकारै टारै मुख सों। आधी रतियां मैं रति कहत नजूमि है। -रघुनाथ -- तोष ननसार-संज्ञा, पु० [हिं० ननिहाल] ननिहाल, नटसाल-संज्ञा, स्त्री० [सं० नष्ट शल्य] कसक, नाना का गृह । पीड़ा, बाण, काँटे आदि का वह अंश जो टूट उदा० मोहू कों चातुरता बहरावति मौसिन सों कर शरीर के अन्दर रह जाता है। ननसार की बातें। -गंग उदा० सालत करेजें नटसाल नित नये हैं। ननु-संज्ञा, पु० [सं० नवनीत, हिं. नैन] नव _ नीत, मक्खन । सालत है नटसाल सी क्योंहूँ निकसति उदा० रति सदन अकेली काम केली भ्रलानी, ननु नाहिं। --बिहारी ___ मय बरबानी मालिनी की सुहानी । -देव मटा-संज्ञा, स्त्री० [हिं० नटना] इन्कार, अस्वी- निबद्द-संज्ञा, पु० [सं० निबंध] हठ, प्राग्रह । कृति । उदा० नच्चै निबद्द । करि के बिहद्द --सोमनाथ उदा० भूलि ही जाइगो बेनी प्रवीन, कहो बतियाँ नबरना-क्रि० स० [हिं० नबेड़ना] १. निप जे सदा की नटा पर। -बेनी प्रवीन टाना झगड़ा तै करना २. चुनना। नठाना-क्रि० स० [सं० नष्ट] नष्ट करना, उदा० चलो नबरिये परघर आई । नाहक मरसमाप्त करना । जादा पुनि जाई। -बोधा उदा. पूतना आदि बड़े बड़े केसी लौं दानव के नबेरना-क्रि० स० [बं०] छाँटना, चुनना । कुल मारि नठाये । -देव उदा० खेत कुटुंब ते लीन्ही उखारि नबेर नबेर के नतनारु-संज्ञा, पु० - [देश॰] मटकी का मुंह स्वाद नबीनी । -ठाकुर हॅकने वाला कपड़ा। नबोटी--वि० [सं० नव+हिं० औटी प्रत्यय] उदा० सखि बात सुनौ इक मोहन की निकसी- नवीन, नई, नूतन । मटकी सिर री हलकै। पुनि बाँधि लई उदा० खरसल स्यन्दन बहल बहुत गाड़ी सु _ सूनिये नतनारु कहूँ कहूँ बूंद करी छलकै नबौटी। -सूदन -केशव नभजया-संज्ञा, स्त्री० [सं०] आकाश को नथ-संज्ञा, स्त्री० [हिं० नाथना] १. नाक का विजित करने वाली, रेण । एक आभूषण २. तलवार की मूठ पर लगा उदा० रेनु रेल गहिहै रथुद्धतो। नमजयाहि हुमा छल्ला। द्रुतपाउ सुद्धतो। --दास उदा० कौल की है पूरी जाकी दिन दिन बाटै नभजरी-संज्ञा, स्त्री० [सं० नम + फा० छबि, रंचक सरस नथ झलकति लोल है। | जरी= बेल] आकाश बेलि, आकाशलता। -सेनापति उदा० निज जरि पावत मालति सदा । नमजरीहि नद-संज्ञा, पु० [सं० नाद] १. अावाज, ध्वनि, पठवै प्रियंबदा । -दास शब्द २. बड़ी नदी। नभश्री-संज्ञा, पु० [सं०] सूर्य, आकाश की उदा० १. सूनो के परम पद, ऊनो के अनंत मद शोभा। नूनो के नदीस नद, इंदिरा मुरै परी। उदा० नमश्री कैसो सुभ ताटक । मुकता मनिमय -देव सोभत अंक। -केशव नदीपतिकुमारी-संज्ञा, स्त्री० [सं० नदी पतिः नमूंद-वि० [हिं० न+मूंद=बंद होना] खुले सागर+कुमारी=पुत्री ] सागर की पुत्री, हुए, उन्मीलित। लक्ष्मी । उदा० नूर भरे नमित न मूंदन नमूद नैन, नागर उदा. ऐसीपति देव, मोहिं ऐसी पति दीन्ही, नवेली के मसीले नैन नोकदार । -ग्वाल प्राजु मेरी सो न दीपति, नदीपति कुमारी कीन्हे बदन निमूद, दुग मलंग डारे रहत । की। -बिहारी -देव For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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