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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तहतही ( ११४ ) तारक उदा० सखि ! कौंमल चित्त चकोरन पं, यह नाँहक । चाबुक । हायं तवाई परी। -द्विजदेव | उदा० तुरत तुरंग करि तातौ ताहि ताजन दै, तहतही-संज्ञा, स्त्री० [अनु॰] शीघ्रता, जल्दी । फफकि फॅदाइ दियौ बाहर कनात को। उदा० तहतही करि रसखानि के मिलन हेतु बह -चन्द्र शेखर बही बानि तजि मानस-मलीन की। ताते-वि० [?] चंचल, तेज । -- रसखानि उदा० ठिले अत्ति हैं मह मातंग माते । उमंगत्त तहना क्रि० अ० [?] जलना, तप्त होना, खट तैयार तूरंग ताते । -पद्माकर कना । तातो-वि० [?] तीव्र, तेज । उदा० जमुना तट बीर गई जब तें तबतें जग के उदा० तुरत तुरंग करि तातो ताहि ताजन दै, मन माँझ तहौं । --- रसखानि फफकि फॅदाय दियो बाहिर कनात के । तहराना-क्रि० स० [हिं० तेहा] क्रोध करना, -चन्द्रशेखर झगड़ा करना। ताब-संज्ञा, स्त्री० [फा०] दीप्ति, चमक, आब उदा० तहराती गोविंद सो गोप सुता, सिर प्रोढ़ २. ताप ३. शक्ति । नियाँ फहराती फुही। -बेनी प्रवीन उदा० पारिजात-जातह न, नरगिस छातह न तांकना क्रि० स० [सं० तर्क] तर्क करना, चम्पक फुलात है न, सरसिज ताब में । विचार करना । -ग्वाल उदा० नावक सर से लाइ के, तिलक तरुनि इत ताबुक-संज्ञा, पु० [सं० तापक, हिं० ताबा] तॉकि । पावक झर सी झमकि कै, गई १. तावा, लोहे का चक्राकर वह पात्र जिसमें झरोखा झॉकि । -बिहारी रोटियां सेंकी जाती हैं। २. तापक ३. ज्वर । तांदुर - संज्ञा, पु० [सं० तंदुल] तंदुल, अक्षत, उदा० खिन एक ते खोइ गयो कछु है तरुनी को चावल । तप्यौ तनु ताबुक सो। -देव उदा० तांदुर बिसर गई बधु तें कहयों ले प्राव तब ते पसीनों छूट्यो मन तन को तयो । तामरा-वि० [सं० ताम्र] लाल, ताँबे जैसे रंग का । तांसी-संज्ञा, पु० [सं० त्रास] १. दुख २. धम उदा० तामरा बदन क्यों करित मोती चूर आँखें, की, डॉट । सुरुख सुपेद हयाँ सिराइ जी में पाई है। उदा० १. राधिका के मिलिबे को गोविंद, -बेनी प्रवीन कितेक दिनान लौं देत हों ताँसी। तायफा-संज्ञा, स्त्री० [फा०तायफ़ा] १. वेश्याएँ -. ग्वाल और उनके साथ रहने वाली मंडली २. वेश्या । ताई -संज्ञा, स्त्री० [हिं० तवा, तई (स्त्री०)] उदा० १. तनन तरंग तान तोमद कलश तैसी एक प्रकार की छिछली कढ़ाई। तायफा तड़ित गति भरत नई नई । उदा० बिरह रूप विपरीत, न बाढ़ी । हिये मनो -घनश्याम ताई के काढ़ी। -बोधा | तायल–वि. [हिं० तरायल] तेज, चंचल २. ताछन - संज्ञा, पु० [सं० तक्षण-कटाब. कावा । उतावले, शीन गामी जल्दबाज । उदा० उड़त अमित गति करि करि ताछन । उदा० चली छार से करत खुर-थारनि पहार, जीतत जनु कुलटान-कटाछन । अति तायल तुरंगम उड़त जनुबाज । - पद्माकर -चन्द्रशेखर ताछना-क्रि० सं० [प्रा० तासन, सं० त्रासन] तार - संज्ञा, पु० [सं० तल] तल, सतह । त्रस्त करना, संतप्त करना । उदा० गौतम की नारी सिला भारी ह्व परी ही उदा० कान्ह प्रिया बनिकै बिलसै सखी साखि नाथ, ताही पै पधारे, त्यागि महामद सहेट बदी जिहि काछे। कवि 'पालम' तार है। -ग्वाल मोद विनोदनि सों तन स्वेद समै मदनज्जल तारक-वि० [सं० ताड़ना] १. दण्डक, ताड़ना - ताछे। -आलम देने वाला, सजा देने वाला २. तारने वाला ताजन-संज्ञा, पु० [फा. ताजियाना] कोड़ा, I पापों से उद्धार करने वाला। - ग्वाल For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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