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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११२ ) तरराना किधौं कलधौत के तबक ताई काढ़े है। सूबो तुरगन की तमाम करियतू है। -देव -- केशव तमामी-संज्ञा, स्त्री० [फा०] एक प्रकार का कवि पजनेस कंज मंजुलमुखी के गात । देशी रेशमी वस्त्र । उपमाधिकात कल कुन्दन तबक सी । उदा सोने के पलंग मखमल के बिछावने हैं. --पजनेस तकिया तमामी के तमाम तरकीप के । तबल-संज्ञा, पू० [फा० तबर] कुल्हाड़, कुल -बेनी प्रवीन हाड़ी की भांति एक हथियार २. नगाड़ा, बड़ा तमिल-वि० [सं० तम, तमिस्र] क्रुद्ध, नाराज । ढोल । उदा० तमीपति तामस तें तमिल व उयो पाली, उदा० तोमर तबल तुफङ्ग, दाव लुट्रियो तिही तियनि बधनि कहँ दूनोई दवतु है। छन । -सूदन -पालम सैफन सों, तोपन सों, तबल रु ऊनन सों तमोतखारे-संज्ञा, पु० [सं० तम्बाकू हिं० वार] दक्खिनी दुरानिन के माचे झकझोर हैं। पान या ताम्बूल देने वाले । -कवीन्द्र उदा० खौखरे बरुन तमोखारे तारापति चौंखारे तबेला-संज्ञा, पु० [?] १. पशुशाला, २, जन्तु चारु चतुरानन चतुर हैं। -पद्माकर शाला ३. अश्वशाला । तरकीप--संज्ञा, स्त्री० [अ० तरकीब] तरकीब, उदा० फुकरत मूषक को दूषक भुजंग, तासों जंग ढंग, रचना, बनावट । करिबे को झकयो मोर हद हेला मैं । उदा० सोने के पलंग मखमल के बिछावने हैं । पापुस मैं पारषद कहत पुकारि कछु रारिसी तकिया तमामी के तमाम तरकीप के। मची है त्रिपुरारि के तबेला मैं । --बेनी प्रवीन --भूधर तरच्छ-संज्ञा, पु० [सं० तथु, हिं० तरक्ष] लकड़तबेली-संज्ञा, स्त्री० [हिं० तलाबेली] तलाबेली, बग्घा नामक पशु । व्याकुलता, छटपटाहट । उदा० पुग्छन के स्वच्छजे तरच्छन को तुच्छ उदा० कहा करौं कैसे मन समझाऊँ व्याकुल करें । कैयो लच्छ लच्छ सुम लच्छन न लच्छे जियरा धीर न धरत लागिये रहति तबेली। -पद्माकर -घनानन्द तरछना-क्रि० अ० [हिं० तिलछना] छटपटाना, तमंका-- संज्ञा, पु० [हिं० तमकना] जोश, ___ बेचैन रहना । आवेश २. क्रोध, तेजी। उदा० भारी सो भुजंग भागीरथो के सूतोर परयौ. उदा० आगें रघुबीर के समीर के तने के संग, ताहि लखि खाइबे को तरछत पार भो। तारी दै तड़ाक तड़ातड़ के तमंका में। -पद्माकर - पद्माकर तरजना--क्रि० अ० [सं० तर्जन] डाँटना, डपटना तमई- संज्ञा, स्त्री० [सं० तमी] तमी, रात्रि, । संत्रस्त करना । उदा० है तम सों तमई बितई अब द्योस चढ़ यो उदा० ग्वाल कवि चातकी परम पातकी सों मिल, सु चढ़ी कुल गारी । -आलम मोरहू करत सोर तरजि-तरजि कै। तमचोर-संज्ञा, पु० [सं० ताम्र चूड़] ताम्र चूड़ मुर्गा । तरना-क्रि० स० [हिं० तलना] १. तलना उदा० सारस चकोर खंजन अछोर। संतप्त करना । प्राग में किसी पदार्थ को घी या तमचोर लाल बुलबुल सु मोर ॥ - सूदन तेल में पकाना, २. पार होना । तमा- संज्ञा, स्त्री० [अ० तम] लोभ, लालच। उदा० दारुन तरनि तरै नदी सुख पावै सब सीरी उदा० खाने को हमारे है न काहू की तमा रहै, घन छांह च हिबौई चित धर्यो है । सू गाँठ में जमा रहे तो खातिर जमा रहै । . --सेनापति - ग्वाल तरराना- क्रि० अ० [हिं० तरारा] तेजी से तमाम-वि० [] १. खत्म, समाप्त २. सब बहना, निरन्तर प्रवाहित होना। पूरा । उदा० भाग भले तिनके सु कबिंद जु रावरे की उदा० १. डूबी न बीथिन चकोर चतुराई मन रस रीति निहार ।यों कहि कै तिय नैननि ते -ग्वाल For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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