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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०४ ) ठयना उदा० दुबरी भई है देह इति न गई है बाल तब | उदा० बैरिनि जीभहि टोभ दै री मन बैरीको ही मसाल अब दिया की सी टेम है। । भुजि के मौन धरौंगी। -देव -रघुनाथ टोया -संज्ञा, पु० [हिं टोना] टोटका, टोना, टैठी-वि, [प्रा. टेटा] चंचल, अस्थिर । नज़र । उदा. पैठत प्रान खरी अनखोली सुनाक चढ़ाएई- उदा भूषन वे मनि मोतिन के लखि, सौतिन के डोलत टैठो । -घनानन्द उर लागत टोया । -देव टोडिस-वि . [?] शरारतो, बदमाश । टोह-संज्ञा, स्त्री० [देश ?] खोज, खबर । उदा० टोडिस नयी भयौ डोलत आनंद घन तिन उदा० और ठौर कहूँ टोहे ह न अहटाति है । ही सों पगि खगि जिनसों पूजी जियमास । -मालम -घनानंद टोहना-क्रि० स० [हिं० टोह खोजना, टटोटोड़िक-वि० [सं० तुंदिक] पेटू, पेटवाला । लना, २. छूना । उदा, टोड़िक व घनानंद डाँटत काटत क्यौं । उदा० . बृन्दा सी वृन्द अनेक छली तहँ गूजरीनहीं दीनता सों दिन । -घनानन्द नेह सों को अंग टोहै। -ठाकुर टोम--संज्ञा, पु० [हिं० डोम] टोंका । टौर-संज्ञा, पु० [हिं० टेर ?] दाँव, घात, उदा नैन मुदै पै न फेर फितूर को टंच न टोभ । अवसर २. जाँच, थाह, परीक्षण।। कछू छियना है । -पद्माकर | उदा. यह ग्रोसर फाग को नीको फब्यौ गिरिटोभ देना-क्रि० स० [देश॰] किसी फटी वस्तु । धारी हिले कहूँ टौरनि सों। -घनानन्द को जोड़ना, बन्द करना, सी देना । ठटना-क्रि० अ० [हिं० ठाठ] सज्जित होना, । उदा. ठहरै नहिं डीठि फिरै ठठकी इन गोरे कपोशोभा पाना, सजना। . लन गोलन पै । -ठाकुर उदा० दमकि दमकि जाति दामिनी चहँघा चारु ठठुकना-क्रि० अ० [हिं० ठिठुकना] ठहरना चमकि चमकि चूनरी में अंग ठठि उठे। चलते-चलते सहमा रुक जाना। -ऋषिनाथ | उदा० प्यारे सुजान समीप कों बाल चलै ठट्रक संगति कै फनि की, मनि सीस ते चाहत, मुरिक मुसिकाति है। -सोमनाथ देव सुकैसे ठटैगी। -देव ठभरना-क्रि० स० [बुं०] धोखा देना, छलना । ठट्ठ-संज्ञा, पु० [हिं० ठट] १. समुह, झुंड उदा० काहे को तुम हम को लालन दबरत ठभरत २. बनाव, सजावट, रचना। ठाढ़े। -बकसी हंसराज उदा० १. ठट्ठ मरहट्टा के निघट्टि डारे बानन सौं, ठयना-क्रि०अ० [अनुष्ठान] १. स्थित होना, खड़ा पेस कसि लेत हैं प्रचंड तिलगाने की। होना, ठहरना लगना, जमना २. करना, ठानना। उदा० १. इतनी सुनि दीन मलीन भई, मुख मोहनी -सोमनाथ ही की चितौत ठई । -देव २. उतै पात साहज के गजन के ठट्ठ छूटे, चित दै चितऊँ जित अोर सखी तितनंद उमड़ि घुमड़ि मतवारे घन कारे हैं। किसोर की ओर ठाई। -देव -सोमनाथ २. पालम कहत अाली अजहूँ न आये पिय ठठकना-क्रि० प्र० [सं० श्रेष्ठ] स्तंभित होना, फैधौं उत रीत बिपरीत बिधि ने ठई । डरजाना, एक बारगी रुक जाना । -आलम For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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