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मलाझल
झारना
तमकत पावै तेगबाही और सिलाही है। [हिं० झनकार] कांति, चमक ।
-पद्माकर उदा० निझुकनि रैनि झुकी बादरऊ झुकि प्राए हौं हैं गई जान तित पाइगो कहँ ते कान्ह आन
देख्यौ कहौं झिल्लिनि की झांई झहनाति है। बनितान हूँ को झपकि झलो गयो ।
-मालम --पद्माकर झांकनी. संज्ञा, स्त्री० [सं० झंकार] झनकार, झलाभल- वि. [अनु॰] चमकदार, चमकने वाले ध्वनि, आवाज । चमाचम ।
उदा० झांकनी दै कर काकनी की सुन, काननि बैन उदा, कंचन के कलस भराइ भरि पत्रन के ताने _ अनाकनी कीने ।
-देव तुग तोरन तहाँ ही झलाझल के ।
झंख-संज्ञा, पू०[देश॰] एक प्रकार का हिरन ।
--पद्माकर उदा० ठाढ़े ढिग बाघ बन चीते चितवत दुग झांख बातन बीच बड़ी है झलाभल पात्र करै धर
मृग-साखा मृग रोझ रीझि रहे हैं। -देव घूट के कल्ला ।
--अज्ञात झांझरिया-संज्ञा, स्त्री० [अनु०] पैजनी, पायल । अम्बर अमल मुख मंजूल सरद ससि, रूप की
उदा. झांझरियाँ झनकैगी खरी खनकैगी चुरीझलाभली बरफ हिम रितु की । --ग्वाल
तनको तन तोरे ।
-दास झलान-संज्ञा, पु० [?] भूला, दोला।
झाँझि-संज्ञा, पु० [हिं० झंझ, झंझट] झंझट, उदा० ज्यों ज्यों तुम गाइ गहि-गुननि बिकासौ अड़ियलपन, अड़न, झैझ ।
बन, ह ह अध ऊरध झलान के झकोरे । उदा० रुक्यो साँकरै कूज-मग, करत झांझि. झकमैं ।
-द्विजदेव
रात । मंद-मंद मारुत तुरंग खूदत प्रावतु झलाबोर-संज्ञा, पु० [हिं० झलमल] कलाबत्तू
जातु ।
-बिहारी प्रादि से बुना हा साड़ी आदि का चौड़ा अंचल ।
पजनेस झंझा झांझ झोकत झपाक झप २ जरदोजी या कसीदे का काम ।
झुराझूर झिरनि झिरँगै झखान में। उदा० १. झूमे झलाबोर झुकझूना पै झमंक झूम
-पजनेस __ झपक झपाक झप झाकिन मैं झुझुले । झवा-संज्ञा, पु० [सं० झामक] पत्थर का
-पजनेस
टुकड़ा या जली हई इंट, जिससे स्त्रियां अपने झहनाना-क्रि. अ. [अनु॰] १. रोएँ का खड़ा पैर की मैल छुड़ाती हैं । होना २. झनझन शब्द होना ।
उदा० छाले परिबे के डरनु सकन हाथ छुवाइ, उदा० १. गहन गहन लागे गावन मयूर माला
झझकत हिये गुलाब के झंवा झंवैयत पाइ । झहन झहन लागे रोम रोम छन में ।
-बिहारी - रस कुसुमाकर झाई-संज्ञा, स्त्री० [?] प्रतिध्वनि, गूज । २. निकनि रैनि झुकी बादरऊ झुकि उदा० कुज-कुज सुखपुज मधुप-गुज कोकिला सुर आए, देख्यौ कहौं झिल्लिनि की झाँई
की भाई।
--घनानन्द झहनाति है।
-आलम झाप-संज्ञा, पु० [हिं० झड़प] पर्दा, चिक, झहरना-क्रि० अ० [अनु०] १. शिथिल पड़ना 'चलमन । ढीला पड़ना २. झरझर शब्द करना।
उदा झुकि झुकि भूमि भूमि झिलि झिलि झेलि उदा० १. झहर झहर परै पासुरी लखाइ देह बिरह
झेलि, झरहरी झापन पैं झमकि झमकि बसाइ हाइ कैसे दूबरे भये । - रघुनाथ
-पद्माकर २. झहरि झहरि झीनी बूद है परति मानो , झाबर--संज्ञा, पु० [देश॰] दलदल ।। घहरि घहरि घटा घेरी है गगन में। उदा० नाही तौ न हील होन देरी झील झाबरनि । -देव
देव झहराना-क्रि० अ० [अनु॰] झल्लाना, खिज- झारना-क्रि० स० अनु. झर] तलवार लाना।
चलाना। उदा० ए ससिनाथ सुजान सुनो, सखियान सों पूछि उदा० रायखेत जब झारन लागे । झुके निसान गये चितै झहराति है । - सोमनाथ । बढ़ि आगे।
-चन्द्रशेखर झाई -- संज्ञा, स्त्री० [सं० छाया] झनकार,
तहाँ लच्छन सुजान झुकि झारै किरवान
- खुमानकवि
उठ ।
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