SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जींगन जुरो केशव जिल्ली सौं चहूँघा गन झिल्ली के झन- । पति-स्वामी] समुद्र, वारिधि । झनात। -सोमनाथ उदा० सायक एक सहाय कर जीवनपति पयंत । जींगन-संज्ञा, पु० [हिं० जुगुन] जुगुन, बरसात तुम नृपाल ! पालत छमा जीति दुमन के समय दिखाई पड़ने वाला एक कीड़ा, जिसके बवंत । -कुमार मणि - पृष्ठ भाग में चमक होती है। जुबाव-संज्ञा, पु० [अ० जबाद] एक सुगंधित उदा० दसहूँ दिसि जोति जगामग होति, अनूपम पदार्थ, जिसे मुश्क बिलाव कहते हैं। जींगन जालन की । -गंग उदा० कवि केसव मेद जुबाद सों मांजि इते पर बिरहजरी लखि जीगननि कहयो न उहिक प्रांजे मैं अंजन दै। बार । -बिहारी जुमकना-क्रि० अ० [हिं० जुमकना] डटना, सटना, जीतब--संज्ञा, पु० [हिं० जीना] जीवन, जिदंगी। पास-पास होना। उदा० रूप की निकाई देखि हौं तो भाई धाई उदा० थिरकत थिरकि चलत अँग-अँगनि । जीतत कान्ह, ऐसी जुवती के पाएँ जीतब को फलु जुमकि पौन-मग संगनि । -- पद्माकर -आलम जुयती-संज्ञा, स्त्री० [सं० ज्योति] ज्योति जीरन-वि० [सं० जीर्ण] दुर्बल, क्षीण । प्रकाश, उजाला । उदा० जीरन सी जो अहीर की छोहरी, पीर अधीर उदा० एक समै तिय साहि की सेज चली जयती परी रहै ठाढ़ी । दोहरी हगई बेनी प्रवीन करि थारन कौं। मुकुताहल कंठ तें टूटि मनौ, हरी दीपति देह में काढ़ी । परयो सु लगी तिय नेकु निहारन कौं। -बेनी प्रवीन -गंग जील-संज्ञा, स्त्री० [हिं० जिला] राग विशेष । | जुर-संज्ञा, पु० [सं० ज्वाल] लपट, लौं, प्रांच उदा. जील की गीति सो सील की रीति सी. पील २. ज्व र । की चाल सी नील की चूनरी। -तोष उदा. देव जो पान कछू मुने कान तौ, जारौ कुबो प्राखर सो समुझो न परै मिलि ग्राम रहे लनि के जुर सों। -देव तजि जील परे की। -रघुनाथ जुरझना-क्रि० अ० [सं० ज्वल्] ज्वाला मैं, झांइ झांइ झिकरत झिल्ली धरि जील अरु जलना । को गनै अनंत बन जीव के रवन कै। उदा० अब या ही परेखें उदेग- भर्यो दुख-ज्वाल -सोमनाथ पर्यो जुर# मुरझे। -घनानन्द जीलना-क्रि० सं० [अ० जिल्लत] अनादर जुरना-क्रि० अ० [देश॰] १. अँगड़ाई लेना, करना, बेइज्जती करना, तिरस्कार करना, इर्ष्या आलस्य में अंग तोड़ना । .. मिलना, भेंट होना, करना । प्राप्त होना, [हिं० जुड़ना] । उदा० यहि बाँसुरी मैं हरि मेरोइ नाउँ, सुनै सब उदा० १. झुकि झुकि झपकौंहैं पलनि फिरि फिरि गाउँ क्यों जीलतु हैं। -बेनी प्रवीन जुरि जमुहाय । -बिहारी जीली--वि० [सं० भिल्ली] १. स्वर, राग विशेष २. बिधु की कला बध गैलन में गसी ठाढ़ो २. प्रकाश [हिं० उजेला] गुपाल जहाँ जुरिगो। -पजनेस १. झिल्ली ते रसीली जीली, रांटींहू की रट जुराफा-संज्ञा,पु० [अ० जुर्राफा] अफरीका का लीली । -केशवदास एक पशु जो अपने जोड़े से अलग होने पर मर २. प्यारी पिया की तियानि में राजित जैसे जाता है। अंधेरे मैं जाहिर जीली। ! उदा० नूतन बिधि हेंमत रितु जगत जुराफा कीन । जीवक - संज्ञा, पु० [सं०] १. सेवक २. सँपेरा -- बिहारी ३. प्राण धारण करने वाला। आयौ अब जाडौ जग करत जुराफा सौ । उदा० १. सेनापति जासौं जूवजन सब जीवक हैं -ग्वाल कवि अति मंद गति चलति रसाल है। जुरी-वि० [सं० ज्वर] ज्वर ग्रस्त, बुखार से -सेनापति - पीड़ित । जीवनपति-संज्ञा, पु० [सं० जीवन= पानी+ उदा० कबहूँ चुटकि देति चटकि खुजावौ कान, For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy