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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छोनी ( ८८ ) जगार छोनी- संज्ञा, स्त्री० [सं० क्षोणी] १.समूह, श्रेणी, उदा० त्यों रसखानि गयौ मनमोहन लेकर चीन पंक्ति । २. पृथ्वी कदंब की छोरी ।। --रसखानि उदा० १.रस सिंगार को बीज मनोहर कै अलि छोनि छीन-संज्ञा, पु० [सं० शावक हिं० छौना बच्चा सुखारी। -सोमनाथ लड़का। छोभक-संज्ञा, पु० [सं० क्षोभ] दुख देने वाले, । उदा० मानु करिबे की तुम सीख सिखवति--प्रानि राक्षस । कासौं करें मानु कहु मान है री काकी छौन उदा० छोभक छिज करि, विज करि वा बाम सों -सोमनाथ विलास अद्भुत हास साहस जनाये हैं। छैल छौहैं-संज्ञा, स्त्री० [हिं० छोह सं० क्षाभ छल छोभक छपाचर चुरैल आगे पीछे गैल चपलता, चंचलता तेजी गेल ऐल पारत नकीब से । -देव उदा० छाजति छीहैं अंगनि माहिं। छवा छबीले छोरी-संज्ञा, स्त्री० [हिं० छोर = किनारा] छुवे न जाहि । --केशव शिखर, चोटी। जई-संज्ञा, स्त्री० [हिं० जौ] १. अंकुर २. जौ । उदा० १. गरब गुरज पै चढ़ाई तोप कोप करि की जाति का छोटा अंकुर। सौतिन जखीरा कियो जोबन जमा को १. निरखें परखें करखें उपजी अभिलाषनि लाख -- कवीन्द्र जई। -घनानन्द जगजाल-संज्ञा, पु० [हिं० जंजाल ] जंजाल जाई-संज्ञा, स्त्री० [सं० जाती] चमेली की जाति बखेड़ा, झंझट, प्रपंच। का एक पुष्प, जाही। उदा तृष्णाहू तिनूंका जगजाल जाल पूरयो जहां, उदा० जाई की सी माल मु लजाइ रही काहे तें लगी लोभ लौंनी कौंनी भांति सुख पाय हैं। सु, जाइ जाइ हरि जू के हिये में खंगति है। -सूरति मिश्र -आलम जगन्नाथ- संज्ञा, पु० [सं०] १. लगँड़ा-लूला पैर जकंदना-क्रि० अ० [हिं० जकंद ] कूदना, हाथ विहीन २.ईश्वर। उछलना । उदा० १.एक सूरदास दासी एक जगन्नाथ दासी एक उदा० सजोम जकंदत जात तुरंग । चढ़े रन सूरन भृगुदास दासी ताकी एक प्राई है। रंग उमंग। -चन्द्रशेखर -देवकी नंदन जकना- क्रि० अ० [हिं० जक] ठिठकना, भौचक्का जगभरा-संज्ञा, स्त्री० [सं०] विश्वम्भरा, पृथ्वी। होना, चकित होना, चकपकाना। उदा० तब लगि रही जगंभरा, राह निबिड़ तम उदा. एकहि बार रही जकि ज्यों कि त्यों भौंहनि -दास तानिक मानि महादुख । -देव जगा-संज्ञा, पु० [सं० यज्ञ] यज्ञ । जकित थकित व तकि रहे तकत तिलौंछे। उदा० जट्ट का जानहि भट्ट को भेद कुंभार का नैन । -बिहारी जानहि भेद जगा को ।। -गंग खीरा-संज्ञा,पु० [अ० जखीरा] १.कोष, खजाना जगात-संज्ञा, पु० [जकात] दान, महसल, कर. २. संग्रह, ढेर, समूह । चुंगी। For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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