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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -देव -देव छिपन छुहावनी छिपन--संज्ञा, पु० [हिं० छिपाना] गोपन, दुराव | उदा० १. प्रेम मतवारी, छवि छीते की खुमारी, २. कपट । छिति मुरछित डारी, नारी नारी में न उदा० जो पीय ब्याहि लायौ. तासों रोपी है छिपन लहिये । सब लोक लाज लोपी, दुरनीति करी है। छीतना-क्रि० सं० [सं० क्षति] निदित करना -ग्वाल कलंकित करना, बुराई करना। छिपिया-संज्ञा, पु० [देश॰] दरजी, कपड़े सीने उदा० कहै परताप पाये मोहन रंगीले स्याम नख वाला। सिख देखि करि आनन छित रही। उदा० छिपिया को दूधभात खीचरी है करमा की --प्रतापसाहि चक्करा रैदास जू चमार के खाये हैं। छींद - संज्ञा, स्त्री० [हिं० छिनार] छिनार स्त्री, -ठाकुर -चरित्र भ्रष्टा नारी, व्यभिचारिणी।। छियरा-संज्ञा, स्त्री० [हिं० छोर] खूट, छोर . उदा. जब तें छबीले ज के ईछन तीछन देखे, किनारा । ताछिन तैं छींद कैसे छंदनि करति है । उदा० जोतिष देख ले ऐसी कहै गठियाय ले अांचर -सुन्दर के छियरा सों। -ठाकुर छोबर संज्ञा, स्त्री० [देश॰] एक प्रकार का छिरद-संज्ञा, स्त्री० [?] हठ जिद। कपड़ा मोटी छीट, वह कपड़ा जिसमें बेल बूटे उदा० छाल कों उढ़ाइ जल छोटै छिरकाइ नेक, छपे हों। नाग को छुवाइ याकी छिरद मिटाइदै । उदा० हा हा हमारी सौं साँची कही वह को हुती -पद्माकर छोहरी छीबरवारी । छिरहरे-वि० [हिं० छरहरा] हलका, थोड़ा, छोर-संज्ञा, पु० [सं० छीर] पानी। कम । उदा० नल छोर छींट बहाइयो । -केशव उदा० छिरहरे जल जैसे दरी कमदकली. ऐसे छीव -वि. [?] उन्मत्त, मस्त । उरोजनि दीनी सुरुचि दिखाई सी। उदा , छपद छबीले छीव पीवत सदीव रस, लंपट -गंग निपट प्रीति कपट ढरे परत । ---देव छिहरना-क्रि० अ० [सं० क्षरण] छिछकारना छुटना-क्रि० प्र० [हिं छूटना] चमकना, दीप्त छितराना, सींचना, पानी की छीटें देना। होना, दिखाई पड़ना । उदा० मोहिलगी गरमी प्रति ही अति सीत उपाइ उदा.-बीजु छुटै उछटै छबि देव छटै छिनु नाहि थकी करिकै हौ । को जल कोठरी मै कटै दिन कैसे। छिहरै कवि तोष तही महि सीतल पैहौं । हरना--क्रि० अ० [हिं छुटना] छूटना,। -तोष उदा. घूघट के घटकी नटिकी सुघुटी लटकी लटकी छीक--संज्ञा, स्त्री० [सं० क्षय] नाश, क्षय । गुन गूंदनि । केहूँ कहूँ न घुरै बिळूरे बिचरै न 'सेख' व्यारे श्राजु कालि पाल चाल देखो आइ,छिन जुरै निचुरै जल बूंदनि । -देव छिन जैसी तन-छीजन की छीक है। -पालम सुथरे छुरि केस छवानि लगें । छीजन। --क्रि, अ० [सं० क्षयरण] घटना, कमजोर भृकुटी जुग चाप विसाल जगें। होना, दुर्बल होना । -सोमनाथ उदा० सखि जा दिन तें परदेस गये पिय ता दिन छुइना-क्रि० सं० [हिं० छुवना] रँगना, रंजित ते तन छीजत है। -सुन्दरीसर्वस्व होना, छू जाना। छोड़ना-क्रि० सं० [सं० क्षीण] १. नष्ट करना उदा. कहि देव कहौ किन कोई कछू तबते उनके हटाना २. छीनना ३. छूना, स्पर्श करना । अनुराग छुही । -देव उदा० खेलि हैं ना हम फागुअली पै छली बली है छुहावनी- वि० [हिं० छोह =प्रेम, स्नेह] प्रिय, सिर के पट छीडै । --बेनी प्रवीन __ अच्छी, प्यारी। छीत--वि० [प्रा० छित्त] १. स्पृष्ट, स्पर्श किया उदा. यह लात चलावनी हाय दैया, हर एक कों हुमा, छुपा हुमा, २. प्रभावित । नाहिं छुहावनी है । सुनी तेरी तरीफ मिला For Private and Personal Use Only
SR No.020608
Book TitleRitikavya Shabdakosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishorilal
PublisherSmruti Prakashan
Publication Year1976
Total Pages256
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size21 MB
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