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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४६ ) अवंकि त्रिभुज हबद और यदन में एक त्रिभुज के क्षे कोज दहा और बददुसरे त्रिभुज के दो कोन बयद और सदव के बाला करार है और भुज बद दोनों में उभयनिट है इनलिये मुगबह वरावर हे भुज दय के लेकिन यह साबित होता है कि जबाबर है की इसलिये दय और दफ मिलकर बराबर है वज के पहावाशित करना का विवेचना सेजिसी बताएगावा मायका अकल दर्याप्त मारने का का (१) याद रकखो कि आवागार शेजा होला कि दोहुई जमान्या अपना वाई योर मेयोपपाय वा वर पाना माध्य। य औक का है प्योर वह पमेयोग्याव्यथा वस्तूपपालमा य उ दक्ष की शिनी भी पकाय या रसपमान साध्य पर मौका होती है . (२) जिन जस्तापाटा साध्य को पकाना हो उनको चलोगो करलो कि वह दावको मुहान जिंकावी जीवावी (३) फिर इस खिंची हुई माया लामा और होम करको लापम के मलाको स्याफल कारो और द स्यो कि यह दीफत विधि समापी उमी. दस की किसी बलमपाल या प्रमेयोपमा साधा के सवातिया नहीं अमर कस ला तुम न दर्ताका कारण मोकामानिकी माया में लाई मनानाना रखा जाना को विरार मरत पड़ तो कामी यो जोर दस को एकीका को किसान २ओं चोर कोक के लोन पायों से बात में रजत पस इलाके कया है वह गनी का और कोषमा रहनी का और कोगों वगर: क्या इलाकी रखते है और फिर देली दिवारको दम की किसी वसघपाला या अमेयोपमादा माया में पाये जाते है या नहीं या उससे पैदा होते हैं या नहीं (५) जागर इस कोशिशसे मी तुम्हारा मतलय न निकले तो यह न समझो कि हमारी महगत येकायदा हुई याद रखो कि कारणेसा होता है कि इस कोशिशमा औधी मास्तमाल वायोजादा साधा स्याफल होजाती हैं साध्यबस्तुपयादा- चतुर्भुज अवसद के वरान सवा ऐसा त्रिभज बनायो कि जिम की एका भुज शाम हो और दूसरी बस को दिशा पर हो विवेचना-ऐसा त्रिभुज अबस चलो जिनकी एक भुज शाब हो और टूमरी नुज बस को दिशा पर 'होचौर फर्ज करलो कि उस लिभुज का स्कुना सन् मंज के रकबे को बराबर है For Private and Personal Use Only
SR No.020605
Book TitleRekhaganit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Babu
PublisherAtmaram Babu
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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