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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (2) टि० (२) जिस दिन्दु पर कोन कमाने वाली रेखा मिलती है उसको कोन का शौर्ष और उन रेखाओं में से हर एक को कोन की कहते है विद्यार्थियों को बाद रखना चाहिये कि भुज जिन रेखायों से कोन बनता है उनके घटने बढ़ने से कोन घटता बढ़ता नहीं है जैसे ब म स और द अ य एक ही कोन है टि. (३) इस किताब में मूक्ष्म रूप से सरल कोन की जगह सिर्फ कोन शब्द लिया जायगा ब (१०) जब एक सोधी रेखा दूसरी सीधी रेखा पर खड़ी होकर अपने आस पास के कोन जिन्हें आसन्न कोन कहते हैं बराबर बनावे तो उन कोनों में से हर एक कोन समकोन होगा और खड़ी सीधी रेखा को दूसरी सीधी रेखा पर लम्ब कहते हैं 。 टि० ( १ ) समकोन की परिभाषा इस प्रकार भी की गई है कि वह समकोन का व्याधा है जिसके एक रेखा व्यपने किसी सिरे पर अगर बह रेखा उस सिरे की तरफ़ बढ़ाई जावे अपने बड़े हुए हिस्से के साथ पैदा करती है और इस पिछले कोन को सीधा कोन कहते हैं ( ११ ) अधिक कोन वह कोन है जो सम कोन से बड़ा हो टि० ( २ ) जब एक सीधी रेखा दूसरी सीधी रेखा पर लम्ब हो तो दूसरी सीधी रेखा भी पहली पर लम्ब होगी टि० अधिक कोन दो सम कोन से छोटा भी होना चाहिये ( १२ ) न्यूनकोन वह कोन है जो समकीन से छोटा हो < टि. ० अगर किसी कोन का एक भुज कोन के शीर्ष की तरफ़ बढ़ाया जावे तो एक दूसरा कोन पैदा होगा यह कोन पहले कोन के बराबर या उससे छोटा या बड़ा होगा अगर बराबर है तो पहला कोन ममकोन और अगर छोटा है तो व्यधिक कोन और जो बड़ा है तो न्यून कोन होगा (१३) सीमा किसी चीज के किनारे को कहते हैं For Private and Personal Use Only (१४) क्षेत्र वह है जो एक या जियादा सीमाओं से घिरा हो (१५) वृत्त वह च ेत्र है जो एक रेखा से जिसका नाम परिधि
SR No.020605
Book TitleRekhaganit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaram Babu
PublisherAtmaram Babu
Publication Year1900
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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