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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जाणो-प्राणो ( ४३६ ) जाती जागो-प्राणो-(न०) १ जानान्माना । नुसार) हिन्दू जाति में किया गया ब्राहाण आवागमन । २. हानि लाभ। (क्रि०) क्षत्री आदि के रूप में मानव समाज का जाना और पाना। विभाग । हिन्दू समाज । जाति । वर्ण । जात-(ना०) १. जाति । समाज । २. गुण । २. देश परम्परा या धर्म की दृष्टि से धर्म आदि की दृष्टि के पदार्थों का किया गया मानव समाज का विभाग । विभाग। वर्ग। कोटि । ३. प्राकृति, यथा-हिन्दू, पारसी, मुसलमान आदि । प्रकृति प्रादि की दृष्टि से जीव-जंतुओं का ३. गुण, धर्म, प्राकृति आदि की दृष्टि से विभाग । ४. किस्म । प्रकार । ५. गुण।। तथा योनि भेद से पदार्थों अथवा जीव६. किसी कामना से की जाने वाली देव- जंतुषों का बना हुआ विभाग, जैसे मनुष्य, दर्शन यात्रा। ७. विवाहोपरान्त वर-वधू पशु, स्त्री, पुरुष, घोड़ा, साँप आदि । का देव-पूजार्थ देव स्थानों में जाना । ८. जातिधर्म-(न०)१. जाति या वर्ण का धर्म । गोत्र । ६. जन्म । १.. पुत्र । (वि०) १. २. जातियों के अलग-अलग कर्तव्य । जन्मा हुआ । उत्पन्न । २. प्रकट । जाति-पाँति-(ना०) १. एक पंक्ति में भोजन जातक-(न०) १. बुद्ध के पूर्व जन्म की करने वाला समाज । २. बिरादरी । कथाएँ । २. बच्चा। जातिभाई-(न०) एक ही जाति का होने से जातणी-(ना०) स्त्री-यात्री। यात्रिणी। माना जाने वाला भाई। जातना-(ना०) यातना । कष्ट । पीड़ा। जातिभेद-(न०) जातियों में परस्पर रहने जातपात-(ना०) १. जाति-पाति । बिरा- वाला अंतर । दरी। २. एक पंक्ति में बैठ कर भोजन जातिभ्रष्ट-(वि०) जाति से बहिष्कृत । करने वाली जातियों का मेल । जातिमद-(न०) जाति का अभिमान । जात बार-दे० जाती बाहर। जातिवाचक-(वि०) जाति के गुण इत्यादि जातरी-दे० जात्री। बताने वाला। जातरू-(न०) बैलगाड़ी के 'माकड़ों' में खड़े जातिवाचक संज्ञा-(ना०) १. जाति की किये जाने वाले डंडे । २. तीर्थ यात्री। प्रत्येक इकाई या वस्तु की वाचक संज्ञा । जातरूप-(न०) स्वर्ण । सोना । (व्या०) २. सामान्य नाम । जातवान-(वि०) १. अच्छी नस्ल का। २. जातिवार-(अव्य०) प्रत्येक जाति के हिसाब ऊंची खानदान का । कुलीन । ३. से। असली । खरा । सच्चा । ४. विशुद्ध । जाति वैर-(न०) १. स्वाभाविक शत्रुता । जातवेद-(न०) अग्नि । सहज वैर । २. जातियों में परस्पर वैरजातसुभाव-(न०) १. वंश-परस्परा का भाव । स्वभाव । कुल स्वभाव । २. जाति जाति व्यवहार-(न०) जातियों में परस्पर स्वभाव । भोजन व्यवहार । जातांकरणी-(मुहा०) यात्राएँ करना। जाति स्वभाव-(न०) १. जाति का विशेष जाता-जुगाँ-(अन्य०) युगों के बीत जाने पर गुण या स्वभाव । २. एक अलंकार ।। भी। जातिहीन-(वि०) १. जातिच्युत । २. हीन जाताँपाण-(अव्य०) जाते ही । पहुँचते ही। जाति का। जाति-(ना०) १. कर्मानुसार (अब जम्मा- जाती-दे० जाति । For Private and Personal Use Only
SR No.020590
Book TitleRajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
PublisherPanchshil Prakashan
Publication Year1993
Total Pages723
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size12 MB
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