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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उरदुते उलखणो उरदुत-(ना०)१. उरोजा ति । उरोद्य ति। उराट-(न0) १. छाती । २. हृदय । स्तनों की शोभा । २. उरोजद्वय । युगल- उरासणो-(क्रि०) १. कुएँ में चरस को स्तन । ३. स्तन । पानी भरने के लिये ऊंचा नीचा करना । उरध-(न०) आकाश । (वि०) ऊर्ध्व । २. चरस को कुएँ में उतारना। ऊंचा। उराँ-ढालाँ-(वि०) १. ढाल के समान दृढ़ उरधगत-(ना०) १. ऊर्ध्वगति । ऊंची और उठे हुये वक्ष वाला। जिसका वक्षगति । २. स्वर्ग । ३. स्वाभिमान । (वि०) स्थल ढाल के समान दृढ़ है। २. चौड़ी १. स्वाभिमानी । २. बलाभिमानी । छाती वाला। ३. साहसी। हिम्मतवाला। स्वबली । ३. ऊंची गतिवाला। उरिण-(वि०) उऋण । ऋणयुक्त । उरधपूड--(न0) १. वैष्णवी तिलक । उरिया-(क्रि०वि०) इस ओर । इधर । ऊर्ध्वपुण्ड्र । श्रीमुद्रा। २. विशिष्ट सम्प्र- उरेखणो-(क्रि०) १. चित्रित करना । दायों के भिन्न-भिन्न प्रकार के खड़े तिलक। चित्र बनाना। २. ढाँचा बनाना । रेखा३. खड़ा तिलक । चित्र बनाना । रेखांकित करना । ३. अनुउरधरेख-(ना०) हथेली तथा तलुवे की मान करना । ३. देखना । ५. जानना। सौभाग्य सूचक एक खड़ी रेखा । ऊर्ध्व- उरेब-(न०) १. बुनावट से टेढ़ा काट कर रेखा (सामु०)। की जाने वाली एक प्रकार की सिलाई । उरधलोक-(न०) ऊर्ध्वलोक । स्वर्ग । २. बुनावट से टेढ़ा। (वि०) टेढ़ा । उरप-(न०) नृत्य का एक प्रकार । तिरछा । उरबाणो--दे० उबाणो। उरेव-(न०) १. हृदय । (वि०) हृदयस्थ । उरमी - दे० ऊर्मी। हृदय में स्थित । उरमंडण-(न०) १. स्तन । २. पुष्पमाला। उरेहणो-दे० उरेखणो। ३. रत्नजड़ित सुर्वण हार । उरै-(क्रि०वि०) इस ओर । इधर । उरळाई-(ना०) १. विस्तार । विस्तृति। उरो-(अव्य०) किसी क्रिया शब्द के साथ फैलाव । २. अवकाश । ३. खुली जगह। प्रयुक्त होने वाला निकटस्थ निश्चय सूचक ४. चौड़ाई। एक अव्यय । इसका प्रयोग-'यहाँ, इधर उरळो-दे० उरड़ो। और 'इस ओर' इस भावार्थ में होता है। उरवड़-दे० उरड़। यह 'उरै' शब्द का एक रूप है। इसका उरस-(न०) १. स्वर्ग । २. आकाश । स्त्रीलिंग 'उरी' और बहुवचन 'उरा' है । ३. वक्षःस्थल । ४. हृदय । ५. प्रौलिया दूरस्थ-निश्चय सूचक 'परो' इसका विपफकीर की मरण तिथि । उर्स । (वि०) रीत शब्द है। नीरस । उरोज-(न०) स्तन । कुच। उरसथळ-(न०) १. वक्षःस्थल । उरस्थल। उर्दू- (ना०) १. फारसी लिपि में लिखी छाती । २. स्तन । कुच । जाने वाली एक यावनी भाषा तथा लिपि। उरसथळी-दे० उरसथळ । २. एक खड़ी बोली जिसमें अरबी, फारसी उरस-री-तेग- (वि०) जबरदस्त साहसी । भाषाओं के शब्दों की अधिकता होती है । २. वीराग्रणी। उळखणो-दे० अोळखयो । उरंगम-(न०) साँप। उलखरणो-दे० कुलखणो। For Private and Personal Use Only
SR No.020590
Book TitleRajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
PublisherPanchshil Prakashan
Publication Year1993
Total Pages723
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size12 MB
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