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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पृ. ६७ पर 'प्राडो' शब्द है। उसके तुरन्तु बाद 'पाड़ो' पाया है और फिर 'प्राडो अड़ि', 'पाडो अवळो' आये हैं। इसी प्रकार पृ. २६४ पर 'खड' और 'खड़' हैं । पृ. २७१ पर 'खळ' खलक' 'खळकट', 'खळकरणो', और 'खलकत' दर्शनीय हैं। एक और परिवर्तन शब्दों के लिंग-भेद-सूचक संकेतों में किया गया है । हिन्दी और संस्कृत कोशों में प्रयुक्त पुल्लिग और स्त्रीलिंग के स्थान पर 'नर' और 'नारी' का प्रयोग संक्षिप्त रूप 'न' और 'ना' में किया गया है । राजस्थान और राजस्थानी एक समय था जब राजस्थानी भाषा का ध्वज देश के विशाल भू-भाग के साहित्याकाश में लहरा रहा था और आज दशा यह है कि प्रांतीय भाषाओं की कक्षा में भी उसे स्थान नहीं मिल सका है । मातृभाषा को इस दयनीय स्थिति से हृदय क्षोभ से भर जाता है, पर संतोष इतना ही है कि अाज परिस्थिति ने एक करवट बदली है और इसकी साहित्य-सेवी संतान अब माँ-भारती के विभिन्न अंगों और उपांगों को सबल बनाने में संलग्न है। जब राजस्थान दुहरी गुलामी (अंग्रेजों और राजाओं) की मार से पीड़ित था, सर्वप्रकार की चेतना (शैक्षणिक, सामाजिक व राजनैतिक) के अभाव में राजस्थानी को हिन्दी की एक बोली मान लिया गया। इस प्रकार राजस्थानी भाषा अपने ही घर में अपने न्याययुक्त आसन से च्युत कर दी गई-एक विशाल राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत हो राजस्थानवासियों ने भी इस असत्य को सत्य मान लिया। प्रसिद्ध भाषाविद डॉ. सुनीतिकुमार चाटुा, डॉ. ग्रियर्सन और डॉ० तस्सितोरी जैसे प्रसिद्ध देश-विदेश के विद्वान् राजस्थानी को सर्वथा स्वतन्त्र भाषा स्वीकार करते हैं । डॉ. चाटुा का भाषा-वंश-वृक्ष दर्शनीय है : वैदिक भाषा संस्कृत प्राकृत मागधी शौरसेनी अपभ्रंश (नागर) पैशाची बंगाली पाली हिन्दी गुजराती डिगळ (राजस्थानी) For Private and Personal Use Only
SR No.020590
Book TitleRajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
PublisherPanchshil Prakashan
Publication Year1993
Total Pages723
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size12 MB
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