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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रोगरणगारों ओ-देव नागरी वर्णमाला का नौवा स्वर-वर्ण । ओकूब-वि० बुद्धिमान । ओं-अव्य स्वीकृति सूचक ध्वनि । -पु० प्रो३म् का सूक्ष्म रूप । प्रोकेळ-देखो 'पोकळ । ओंकड़ो-पु० कोल्हु के बैल की आंखें बांधने का चमड़े का | पोखंगी- देखो 'श्रीखंगी'। उपकरण। पोखंभरणौ (बौ)-क्रि० चलायमान करना, चलाना। ओंकार-पु० [सं०] परब्रह्म वाचक प्रणव मंत्र - नाथ-पु. पोखड़-पु० चांक में अन्न राशि का उतरना, सीमा रेखा टूटना। शिव का एक लिंग। प्रोखड़मल-देखो 'अखाड़मल' । पोंगरणी (बौ)-देखो औंगणौ (बी)। प्रोखड़ी (डौ)-पु० सड़ा हुआ नारियल या गिरी। प्रोंबली-स्त्री० १ बैल गाड़ी के थाटे के अगल-बगल लगने वाले । प्रोखण-पु० अनाज काटने का मूसल, मस्तूल । हुक । २ देखो 'प्रांमली' । पोखद (दि, दी), पोखध, पोखधी-स्त्री० [सं० औषधि] प्रो-पु० [सं०] १ परब्रह्म । २ विष्णु । ३ ब्रह्मा । ४ शेषनाग । १ औषधि, दवा । २ जड़ी-बूटी। -प्रधीस-पु० चन्द्रमा । ५ बलराम । -सर्व० वह । यह । -पत, पति-पु० चन्द्रमा । मोघेहकार-देखो 'याकार'। पोखर-पु० मल, विष्टा, गू। प्रोपरी-देखो 'पोरी'। पोखराईयौ--पु० (स्त्री० पोखगई) वह पशु जिसे विष्टा खाने प्रोइंचरणौ (बी)-देखो 'ग्रोहींचणी' (बौ) । की आदत हो। श्रोईजाळी-पु० [सं० अवधिजाल] १ वस्तुओं का अव्यवस्थित देर। पोखरी-स्त्री० अोखली, ऊखल । २ वह स्थान जहां पर अव्यवस्थित सामान का ढेर हो। पोखळ-पु० १ प्रहार, वार । २ देखो 'ऊखळ' । प्रोईयाळौ-देखो 'प्रोयाळी' । (स्त्री० प्रोईयाळी) पोखळणी-पु० [सं० अपस्खलनम् ] अपस्खलन, पतन, गिरावट । प्रोक-पु० [सं० प्रोक] १ घर, मकान । २ छाया। ३ बचाव, | पोखळणी (बी)-क्रि० १ गिरना, फिसलना । २ पथ भ्रष्ट पाड़। ४ शरण, आश्रय । ५ पक्षी । ६ शूद्र । ७ स्थान, होना । ३ उत्तेजित होना । ४ ठोकर खाना । ५ प्रहार जगह । ८ल्याग, परहेज । ९ नक्षत्र समूह । १० देखो न करना या होना । ६ मारना । पोखळमेळो-देखो 'उखळमेळो। प्रोकखग-पु० वृक्ष। पोखळ, पोखळी- १ देखो 'अोकळी' २ देखो 'ऊसार। प्रोकड़-स्त्री० सप्तर्षि के अस्त होने के स्थान से चलने वाली वायु । प्रोखाण (रणी)-देखो 'उखाणौ' । प्रोकढ़ौ-देखो 'ऊकटौ'। प्रोखागिर-पु० गिरि-कंदरा । पहाड़ी गुफा । पोकरणौ (बौ)-क्रि० १ शस्त्र प्रहार करना । २ क्रूरता से देखना । | प्रोखापुरी (मंडळ)-पु० द्वारिका का एक नाम । प्रोकर-पु०१ ताना, व्यंग ।२ तू कहकर पुकारने का शब्द, पोखाळ-पु० [सं० अोखाल] १ युद्ध, रण । २ विरेचन । ____ अवज्ञा सूचक शब्द । ३ देवो 'पोखर'। प्रोखाळ मल-देखो 'अखाड़मल'। पोकरणी (बी)-देवो 'पोखरणी' (बौ)। पोखिद-देखो 'प्रोखद'। पोकळ, पोकळी--स्त्री० [सं० उत्कलिका] १ अधिक भूखा रहने पोखौ-वि० (स्त्री० अोखी) १ अटपटा । २ भद्दा । ३ अनुचित । या गर्मी में फिरने से होने वाली उष्णता । २ हवा के ४ व्यर्थ का निन्दक । ५ कठिन । ६ भयंकर, विकट । कारण उड़ उड़ कर बनने वाली धूल की लंबी हेरियां। ७ खराब, बुरा। प्रोकली--स्त्री० [नं० उत्कलिका] १ हेला, क्रीड़ा विशेष । २ लहर । ३ कली। ४ उत्कठा, चिता, विकलता । प्रोग-स्त्री० १ ताप, पांच । : जलन, दाह । प्रोका-पु० १ देवी का खप्पर । २ देखो 'क' । प्रोगड़-दोगड़े-वि० अव्यवस्थित, अस्त-व्यस्त । प्रोकाई (ोकारी)-स्त्री० वमन, के। प्रोगरा-देखो 'अवगुण'। भोकात- देखो 'ग्रीकात'। प्रोगणनारी-वि० ? अवनगा ग पुर्ण दगा युक्त। ग्रोकोरी-पु० [सं० अवकीट] गोबर-कीट । २ कृतघ्न । For Private And Personal Use Only
SR No.020588
Book TitleRajasthani Hindi Sankshipta Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1986
Total Pages799
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size20 MB
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