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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उलाल्यौ ( १५४ ) उवाड़ उलाल्यौ-पु० चड़स या मोट के साथ बांधा जाने वाला वजन ।। उल्लसरणौ (बी)-क्रि० १ उत्साहित होना, उमंगित होना । उलावरणौ (बी)-क्रि० [सं०पलापनम्] १ पुकारना प्रावाज देना। २ उत्कंठित होना। ३ प्रफुल्लित. हर्षित होना । ४ जोश में बुलाना । २ जपना। ३ ध्वनि करना। ४ उपभोग करना । ग्राना । ५ ऊंचा उठना, ऊपर उठना । ६ चमकना, मौज करना। ५ देना । ६ कामना करना। ७ उछालना, दमकना । ७ प्रभावान होना, कांतिवान होना । ८ प्रानंदित फेंकना। होना, प्रसन्न होना । ९ वर्षा का होना, बरसना । उलास-देखो 'उल्लास'। उल्लाई-क्रि०वि० इस ओर के भी। -स्त्री० स्थान की सुविधा । उलासित-देखो ‘उल्लासित' । उल्लाळ-पु० १ एक मात्रिक छंद । २ देखो 'उलाळ' । उलाहरणौ (नौ)-पु. [प्रा० उवालहन] उपालंभ, उलाहना। उल्लाळणी (बौ)-देखो 'उलाळणी' (बी)। मानभरी शिकायत । उल्लाळी-पु० धक्का, झटका। उलिगण (गणउ, गांरणइ, गांरणउ, गांरणौ)-वि० बिदेशी, उल्लालौ-पु० एक मात्रिक छंद । परदेशी. प्रवासी। उल्लावरणौ (बौ)-देखो 'उलावरणी' (बौ)। उळियोकाचर-१ एक राजस्थानी लोक गीत । २ परिपक्व उल्लास-पू० [सं०] १ हर्ष प्रानन्द । २ चमक-दमक, पाभा ककड़ी। दीप्ति । ३ उत्साह, उमंग । ४ पालस्य । ५ ग्रंथ का एक उळी-देखो 'प्रोळी'। भाग । ६ एक पालकार । उलीग (गांरण, गारगो)-देखो 'उलिगण' । उल्लासक-वि० हर्षित । हर्ष-प्रद । उळीचरणौ (बौ)-क्रि०'१ अंजली या तगारी भर कर बाहर | उल्लू-पू० [सं० उल्क] दिन में अंधा रहने वाला एक पक्षी। फेंकना (पानी) । २ दान करना। -वि० मूर्ख, बुद्ध । उलीपैली-वि० इधर-उधर की । दोनों ओर की । ऐसी-वैसी। | उल्लेख-पू०[सं०] १ जिक्र, चर्चा, हवाला, दाखिला । २ वर्णन । उळीसुळी-वि० भली बुरी । खरी-खोटी। । ३ एक काव्यालंकार । उलुको-स्त्री० मछली। उल्हण-पु० मद्यपात्र । उलुक्क, उलूक-पु० [सं० उलूक] १ उल्लू नामक पक्षी। उल्हरणौ (बी)-देखो 'पोलरणी' (बी)। २ करणादि मुनि का एक नाम । ३ लूता के समान आकाश | उल्हवरण-वि० हर्ष-प्रद, मनोरंजक । का धूम समूह । -वि० क्रूर। उल्हसरणी (बौ)-देखो 'उल्लसणी' (वी)। उनूत-पु० अजगर जाति का सांप । उल्हास-देखो 'उल्लास' । उलेपास-क्रि०वि० इस तरफ । उवंग-देखो 'उमंग'। उलेळ-स्त्री० १ तरंग, हिलोर । २ उमंग । ३ जोश । उबंध-देखो 'उबंध' । उल-क्रि०वि० इस पोर । नजदीक । उवचरणौ (बी)-देखो 'उच्चारणौ' (बौ)। उवट-१ देखो 'अवट' । २ देखो 'उबट' । उलोचि-पु० [सं० उल्लोच] राजछत्र । उलो-देखो 'ऊलौ'। उवटण (रणौ)-देखो 'उबटन' । उवटणौ (बौ)-देखो 'उबटगो' (बौ)। उल्लंघरणी (बौ)-देखो 'उलंघर्णा' (बी)। उवरणस-देखो 'उपदेश' । उल्का-स्त्री० [सं०] १ आकाश से गिरने वाला अग्नि खण्ड । २ अग्नि, प्राग । ३ प्रकाश, रोशनी । ४ मशाल, चिराग । | उवर, (रि रो)-पु० [सं० उर हृदय, उर । -क्रि०वि० ऊपर । ५ दीपक । -पात-० आकाश से टूट कर अग्नि खण्ड । -वि० १ ऊंचा । २ दूसरा, अपर । गिरने की क्रिया। -मुख-पु. शिव । गीदड़, प्रेत । उवलखरगौ (बौ)-देखो 'ग्रोळखगो' (बी)। उल्टी-देखो 'उलटी'। उवसग्ग-देखो 'उपसरग'। उल्लट-पु० हर्ष, प्रसन्नता। उबह-सर्व० बह । उसे । --पु० [सं० उदधि] समुद्र, सागर । उल्लटरपो (बी)-देखो 'उलटगो' (बी)। उवां-सर्व० उन्होंने, उन, उसी, उस, उन्हीं, वह । उल्लस-देखो ‘उल्लास'। -क्रि०वि० वहां। उल्लसण (न)-स्त्री० प्रानन्द, हर्ष प्रादि की क्रिया या भाव। उवारणी (बी)-देखो 'वारगो' (बौ)। रोमांच। उवाड़-पु०१ पद-चिह्न। २ विचार । For Private And Personal Use Only
SR No.020588
Book TitleRajasthani Hindi Sankshipta Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1986
Total Pages799
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size20 MB
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