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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अंत www.kobatirth.org - जथा स्त्री० डिंगल काव्य रचना की एक प्रणाली । -बिन- पु० मृत्यु दिन, धायु का अन्तिम दिन । -पाळ- पु० द्वारपाल । मंतरी । दरबान । सीमांत प्रहरी । प्रतिहार । --पुर- पु० रनिवास, हरम । - पुळ- पु० अन्तिम समय --वरण, वरण-पु०यन्तिम व -मेळ- पु० दोहा नामक छन्द जिसके प्रथम चरण और अंतिम चरण का तुकांत मिलता है । - विदारण--पु० सूर्य व चन्द्र के दश प्रकार के मोक्षों में से एक । " - समय, समं समौ पु० ग्रंतिम समय अवसान काल - स्नान पु० यवनानहीन वि० श्रीम अपार । अंतक, १ यमराज । अंतकराय-पु [ सं . अंतक - राज ] २ शनिश्चर । डर भय ४ महादेव, रुद्र ५ मृत्यु । मौत ६ सन्निपातक ज्वर । वि० नाश करने वाला । लोक- पु० यमपुरी । अंतकापुर, अंतकापुरी स्त्री० १ तीर्थ स्थान । २ देखी 'अंतकलोक ' अंतरा - वि० [सं० अंतक ] १ पारंगत, निपुणा । २ संहारक | पु० यमराज | अंतगड - पु० १ जन्म मरण से मुक्त तीर्थंकर । २ एक सूत्र का नाम (जैन) मोक्ष, निर्वाण । अंतत - प्रव्य० | सं०] १ आखिरकार अंत में । २ सब से पीछे ३ कुछ-कुछ। ४ प्रन्दर, भीतर । अंतरंग, अंतरंगी - वि० १ प्रभिन्न, घनिष्ठ । २ विश्वस्त । ३ प्रतिप्रिय । ४ भीतरी, आन्तरिक । ५ मानसिक । ६ भेदिया । पु० घनिष्ठ मित्र । २ भीतरी अंग, हृदय, मन । ३ विश्वस्त व्यक्ति । -क्रि० वि० बीच में, दरम्यान । अंतर-गु० [सं०] १ २ अलगाव | ३ भीतरी भाग ४ आत्मा, मन, हृदय । ५ अवकाश । ६ अवधि, काल । ७ भिन्नता, विभेद 5 फासला, दुरी । ग्रोट ग्रा । १० परदा ११ छिद्र, छेद, रंध्र । १२ जल, पानी १३ समय अवधि । १८ विछोह, वियोग | १५ पार्थक्य, जुदाई । १६ छल, कपट । १७ नर्क की मंजिल । १= श्रग्नि १९ अन्तःपुर । २० फर परिवर्तन | २१ भेदभाव परायापन | २२ हिसाव की भूल । २३ विषमता । २४ शेषांश २५ इत्र | वि० १ भीतरी । २. प्रिय, प्यारा । ३ अन्तर्धान, अलोप ४ भिन्न, दूसरा ५ समान । क्रि० वि० अन्दर भीतर २ समीप, पास में । ३ मध्य में, बीच में । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -आत्मा, आत्मा स्त्री मन, आत्मा, प्रन्तःकरण । い ब्रह्म मूलतत्व | सार ་ --कांण, कांणम, कांरणी - स्त्री० तराजू के संतुलन का दोष या फर्क प्रतर- मुख - गत- वि० भीतरी, अन्तर्भुत । अधीन । सम्मिलित । गुप्त आत्मिक, मानसिक क्रि०वि० बीच में, दरम्यान । - गति स्त्री० प्रान्तरिक दशा मन का भाव, चित्त वृत्ति । भावना, इच्छा । -- गिरा- स्त्री० अन्तःकरण की आवाज । --ग्यांन पु० आत्मज्ञान, सूक्ष्मज्ञान । -घट पु० हृदय, श्रन्तः कररण | ---चकर, चक्र- पु० शरीरस्थ छे चक्र । पक्षियों की आवाज के अनुसार शकुन विचारने की विद्या । -छाळं-स्त्री० वृक्ष की छाल के नीचे की झिल्ली । जांमी, वि० मन की बात को जानने वाला । भुत, भविष्य को जानने वाला, त्रिकालदर्शी । पु०ईश्वर । -दवार, द्वार -- पु० गुहा-द्वार। खिड़की । -दसा स्त्री० मन की अवस्था । ग्रहों की चाल का विधान (ज्योतिष) - दाह-स्त्री० भीतरी जलन (रोग) । विरह की प्राग । कष्ट, पीड़ा। ईर्ष्या, द्वेष | -दिस, दिसा स्त्री० विदिशा कोण । --द्रस्टी, द्रस्टी स्त्री० [प्रांतरिक सूक्ष्म । ग्रात्मचितन । -धांन, ध्यान-विल्लोप, ग्रोझल । तब्लीन, मग्न । -पट- पु० परदा, ग्राड, ओट छिपाव, दुराव । औषधि का संपुट । ग्राड़ बनाने का वस्त्र । - पणौ1-पु० घनिष्ठता, आत्मीयता, अपनत्व | --पुरख, पुरस-पु० ईश्वर | आत्मा | -पुरी-स्त्री० स्वर्ग, वैकुण्ठ । 1 --बंध- पु० ग्रात्मज्ञान, अध्यात्मज्ञान । विप्राश्नवलि । 1 For Private And Personal Use Only भाव, भावना पु० मन का भाव प्राशय प्रयोजन । भावना | ग्रात्मावलोकन | आत्मचितन । -भूत वि. मिला हुआ। संयुक्त ग्रस्तित्व वाला | मध्यमत पुरु जीवात्मा । -मुख वि० जिसका मुख भीतर की ओर हो। गुरुग्रा
SR No.020588
Book TitleRajasthani Hindi Sankshipta Shabdakosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan
Publication Year1986
Total Pages799
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size20 MB
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