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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ७७ जिम की मदद को बादशाही सेना भी आई थी उस समय राजाके अभाव में उनकी राणीकी आज्ञा से अमरसिंहजी के गुरु व्यास गिरिधरजी राठौड़ोंके सेनापति बनकर हाथी पर बैठ के लड़े | अन्तमें सं १७०१ के श्रावण सुदि १ । २ । ३ तक बड़ी वीरता से लड़के उन दोनों सरदारों सहित काम आये । अतः उनकी सन्तानवाले ( गिरिधरोत व्यास ) श्रावण सुदि १ | २ । ३ को यद्यपि उनको वीरताका उत्सव तौ अब तक करते हैं किन्तु उस दिनका 'छोटी तीज' का त्यौहार नहीं मनाते । (देखो रिपोर्ट, मर्दुमशुमारी, राज्य मारवाड़, का पृष्ठ १८२ ) --~. ० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुष्करणे ब्राह्मण राज्य सहायक । 1 जोधपुर के महाराजा अजितसिंहजी को और जयपुर के महाराजा जयसिंहजी को बादशाह के खिराज के रुपये देने थे सो, कुछ अवधि में रुपये भेजनेका प्रण करके, दिल्ली से अपने २ राज्य में चले आये | और रुपये पहुँचने तक अपनी एवज़ में जोधपुर के महाराजा तो पुष्करणे ब्राह्मण पुरोहित जग्त्जीके ज्येष्ठ पुत्र शिवकृष्णजी को और जयपुर के महाराजा अपने श्रीजीके महन्तजीको सौंप आये । निदान पीछेसे शिवकृष्णजीने अपनी बुद्धिमानी से बादशाह को ऐसा प्रसन्न कर दिया कि इन दोनों राज्यों के ख़िराज के कई लाख रुपये क्षमा करवाके स्वयं भी जोधपुर चले आये और अति समय जयपुर के महन्तजीको मी साथ लेते आये । इससे प्रसन्न होके जयपुर के महाराजाने शिवकृष्णजी को रु. १२०००) की जागीरका चकवाड़ी नामक गांव जागीर में लिख दिया था । For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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