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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ रत्नू नामक एक बेटे को बहू आ गई । वह इस मामले से पिछ कुछ अनजान थी । उसको पोछा करने वालोंने पूछा कि 'तेरे ससुर के कितने बेटे हैं ?' उसने उत्तर दिया कि '४ बैटे है ।' फिर उन्हों ने पूछा कि 'तो फिर यह पाँचवां कौन है ?' तब उसने कहा कि 'कोई चौर होगा ।' यह बात सुनते हो देवराजने रत्नू की बहु के एक थप्पड़ मारी, और यह दोहा बोला:मरजेहे भाभी थारै दासै । चोर नेदानैके न्हासै ? ॥ इस दोहे का अभिप्राय यह था कि चोर होता है वह तो भाग जाता है, किन्तु खेत में नेदान नहीं करता । तूतो भोजाई होके ऐसा ठट्टा करती है परन्तु यह समय ठठ्ठा करने का नहीं हैं, क्यों कि तेरे ठठ्ठा करने से सचमुच चोर समझा जाके मै मारा जाऊंगा । इस दोहे के तात्पर्य को समझ कर रत्नू की बहुने पहिलेकी बात का अर्थ तुरन्त बदल दिया और कहा कि 'मैंने अपने ससुर के ४ बेटे बतलायें हैं उनमें मैंने अपने पतिको नहीं गिना है । क्यों कि इतने मनुष्यों में पतिको बताना खोके लिये लज्जाकी बात है । और जिसको मैंने चोर कहा है वह मेरा छोटा देवर है केवल प्यार करने को मैंने इसका ऐसा ठठ्ठा कर दिया था ।' किन्तु तभी इस बात से पीछा करनेवालों का संशय मिटा नहीं । तब अन्त में देवायतजी को कहा कि आपके यहां कोई दूसरा नहीं है तो 'आप सब एक साथ एकही थाली में भोजन कर लें तब तो छोड़ देंगे वरना सब को मार डालेंगे ।' तब देवायतजीने सोचा कि देवराज के साथ सब के सब भोजन करने से तो हम सभी जाति से खारिज हो जायेंगे और इधर किसी के भी ओ. For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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