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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इसी प्रकार मर्दुमशुमारी राज्य मारवाड़, बाबत सन् १८९१ ई०, के तीसरे भाग के १६० वें पृष्ठ में भी पुष्करणे ब्राह्मणों का वृत्तान्त लिखते समय टाट राजस्थान के उपरोक्त लेखका आशय लिखके एक 'लोक अफ़वाह' * अपनी ओर से अधिक लिख दी * मारवाड़ की मर्दुमशुमारी ने ऐसी मिथ्या 'लोक अफवाह' केवल पुष्करणे ही ब्राह्मणों के लिये नहीं लिखी है किन्तु ऐसी ही एक मिध्या लोक अफवाह 'श्रीमाली ब्राह्मणों' की उत्पत्ति के विषय में भी लिख दी है । वह यों है : " भीनमाल में एक समय राक्षस ब्राह्मणों को व्याह नहीं करने देता था, और कोई करता तो चँवरी में से उसका शिर काटके ले जाता था । उस के भय से व्याह बन्द हो गया और ब्राह्मणों की सैकड़ों लड़कियां कुंवारी रह गई । तब वहां के राजा जगाम ने चण्डीश्वर महादेव जी के मन्दिर पर धरना दिया | महादेवजी ने कहा कि 'मैंने तेरा मतलब समझ लिया । तू ब्राह्मणों से कह दे कि एकही चँवरी में सभी लड़कियों को व्याह देवो राक्षस कुछ विन नहीं कर सकेगा। मगर शर्त यह है कि तू रातभर हाथयार बाँध के चौकसी पर खड़ा रहना ।' राजाने ऐसा ही किया कि एक रात में सब लड़कियों का व्याह करा दिया । सिर्फ एक बींद देर करके तड़के के वक्त आया, उस वक्त राजा ऊँघ गया था। राक्षस, जो मौका देख रहाथा, झट उसका शिर ले गया । उस की माँग राजाको श्राप देने लगी। राजा महादेवजी के मन्दिर पर जाके मरने को तैयार हुआ । महादेजीने कहा कि ' तू ऊँघ क्यों गया ? अबतो वह शिर तो नहीं आ सकता मगर दूसरा शिर उस ब्राह्मण के चिपका दे ।' राजा मन्दिर से निकला, तो एक माली सामने आता हुआ मिला । राजा ने उसका शिरकाटके उस ब्राह्मण के घड़ पर रख दिया । वह फौरन भी उठा | माळी का शिर होनेसे उसका और उसकी भौलाद का नाम 'शिरमा की ' हुआ | " ( देखो मर्दुमशुमारी के तीसरे भाग के पृष्ठ १४० से 1 ) .. For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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