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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६२ रोहिट नामक गाँममें चले गये थे । वहां पर उसी बीमारी से इनका स्वर्गवास हो गया । इनका विवाह जैसलमेर के कला शाहवरामजीकी जमुना नामक कन्यासे हुआ था । इनके १ पुत्र था । [१] 'इन्द्रराज' - इनका स्वर्गवास सं० १९५० के पौष सुदि... कोलाडकाणे में हुआ । इनका विवाह जोधपुरके विशा वैनजीके पुत्र वृद्धिचन्दजी की कन्या व चत्ताणी व्यास घुनजीकी दोहिती 'शिरेकवारी' से हुआथा । इनके ध नराज नामक एक पुत्र था, जो कुमार अवस्थाही में स्वर्गवासी हो गया । ३ ' अखली बाई ' - ये जैसलमेर के हर्ष 'ज्येष्ठमल' जी को व्याही थीं । इनके २ सन्तान थे । [१] 'बसनीबाई ' - ये जैसलमेरके भोपताणी व्यास 'अमोलखदासजी' को व्याही थीं। इनके पूनमचन्द नामको १ पुत्र है । [२] 'बुळीदान' - इसका विवाह फलोधी के धानवी गोबर्द्धन दासजी की कन्यासे हुआथा । इसके धर्मदास नामके १ पुत्र है । ४ 'अटलदासजी' इनका जन्म पाली में सं० १८८२ में और स्वर्गवास भी पाली ही में सं० १९४६ के प्रथम भाद्रवा वदि १२ को हुआ । इनका विवाद जैसलमेर के केवलिया माधवदास जी की 'लाऊ' नामक कन्यासे हुआथा जिनका स्वर्गवास सं० १९४६ के फाल्गुन वदि १० को पालीमें हुआ । इनके सन्तान हुये वे जीवित नहीं रहे । इन्होंने सं० १९९० में खुरासानमें जाके 'कन्धार' में कोठी - साहूकारी दुकान खोली थी। वहांके अमीरबादशाह - कोन्दलखाँ से तथा उन्हीं के भाई व काबुलके अमीर - बादशाह दोस्त मुहम्मदख़ाँ से बड़े सत्कार तथा सन्मान के साथ 'सेठ' की पदवी मिलीथी । आपको कई अच्छे सिद्ध महात्माओं से समागम हुआ था | आप भी पूर्व जन्मके बड़े तपस्वी - योगीराज प्रतीत होते थे । इस ग्रन्थ कर्त्ता मीठालाल को ( जिसे उन्होंने निज पुत्रवत् माना है ) जो कुछ बोध हुआ है वह इन्हीं महात्माओं के पूर्ण अनुग्रह का फल है । For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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