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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वसिष्ठ उवाच । विश्वकर्माणमाहूय प्रोवाचेदं वचस्तवा ॥ अत्र सौधानि दिव्यानि कुरु क्षिप्रमतन्द्रितः॥ - इस वासको सुनकर भगवान्ने देश २ के तीर्थों, अरण्यों, नगरों, व ग्रामों से ब्राह्मणों को लाने के लिये अपने दूत भेजे और विश्वकर्मा को एक बहुत सुन्दर नगर बनानेकी आज्ञा दी। श्रियमुद्दिश्य मालाभिरावृता भूरियं सुरैः ॥ ततः श्रीमालनाम्ना तु लोके ख्यातमिदं पुरम् ॥ लक्ष्मीजी के उद्देश्यसे देवताओं ने उस क्षेत्र को मालाओं से व्याप्त कर दिया । इसलिये वह नगर श्रीपाल नामसे प्रसिद्ध हुआ। .आश्रमेभ्यः समानिन्युर्मुनि पुत्रान् सुवर्चसः। सर्वे वेदव्रतस्नाताः कुतदारपरिग्रहाः ॥ वे भगवान् के दूत अनेक तीर्थाश्रमों से वेद जानने वाले, व्रत करने वाले और विवाह किये हुये मुनि पुत्रों को स्त्रियों सहित ले आये। आगतं सैन्धवारण्याद्राजन् पञ्चसहस्रकम् । मुनीनां वेदवेत्तृणां ब्रह्मविद्याविशारदाम् ॥ उन में वेद और ब्रह्म विद्याके जाननेवाले ५००० ब्राह्मण सिन्ध के अरण्य से भी आये । For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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