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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मवार को जोधपुर में 'पुष्टिकर हितैषिणी' नामक एक सभास्यापित करवाई। (५) सभा का उत्साह किन्तु अन्त में शिथिलता समाने प्रारम्भ ही में तो ऐसा उत्साह दिखाया कि एक जोधपुर ही के पुष्करणोंने-सो भो सम्पूर्ण जाति भरके नहीं किन्तु थोड़ेही से सज्जनोंने-बात ही बात में १५०००।२०००० रुपये एकत्र करके समाके लिये एक बड़ा विशाल 'सभाभवन' बना लिया । और मेरे कथनानुसार उक्त पुस्तक बनाने क लिये प्रबंध होने लगा, अर्थात् 'प्रश्न पत्रिका' नामक एक पुस्तक छपक्षा कर जहां२ पुष्करणे ब्राह्मणों का निवास स्थान है वहां भेजी जाकर पूर्वोक्त साधन एकत्र करके सभामें भेजने का अनुरोध किया जाने लगा। इतना ही नहीं किंतु कई कुटुम्ब वालों के तो वंश वृक्ष (कुरसी नामें ) एकत्र करके छपवाकर विना मूल्य बॉटे भी जाने लगे। इसके उपरांत स्व जातीय वालक ब्रह्मचारियों को यज्ञोप. वीत धारण होते ही त्रिकाल सन्ध्या पूर्वक वेदादि शास्त्र पढ़ाये जाने का भी सभा से उचित प्रबन्ध हो गया, जिस से कई वि. धार्थी घेद पाठी हो गये । इसी प्रकार फोटोग्राफी, घड़ीसाजा, गिल्ट आदि शिल्पविद्या शिखलानेका भी प्रबन्ध होने लगा * विद्यार्थियों के लिये चारों वेदों की ४ संहिताएं तथा त्रिकाल सध्या की २००० पुस्तकें तो मैंने अपनी निज की और से, और षट कर्म की २००० पुस्तकें जोधपुर निवासी जोधाबत व्यास ऋषिदत्तजी के पुत्र ( मेरे मित्र ) व्यास पूनमचन्द की और से मैंने ही बम्बई में छपवा कर सभा की भेट की थी। मैंने स्वयं ४००) ५००) रुपये व्यय करके फोटोका सामान ख. रीदकर विद्यार्थियों को इस विद्यासे विज्ञ किये। For Private And Personal Use Only
SR No.020587
Book TitlePushkarane Bbramhano Ki Prachinta Vishayak Tad Rajasthan ki Bhul
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMithalal Vyas
PublisherMithalal Vyas
Publication Year1910
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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