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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सभी हॉटलों में कुछ न कुछ खाया। जरूरत से ज्यादा पेट को भर लिया तो आप जानते ही है अति के बाद इति हो जाती है। अतिकाभलानबोलना, अतिकीभलीनचूप। अतिकाभलानबरसना,अतिकीभलीनधूप।। अति बोलने से बकवादी, प्रलापी, वाचाल की संज्ञा पाता है। प्रसंग पर भी नहीं बोलने वाला तिरस्कार पात्र होता है। अत्यधिक बरसात जन-जीवन को, खेत खलियानों को नष्ट कर देती है और ज्येष्ठ-वैसाख की धूप त्राहि-त्राहि मचा देती है। तो अति इति का कारण है। उस देहाती ने खाने में अति की, परिणाम! पेट में पड़ा पकवान गड़बड़ करने लगा, इतनी भीड़ में शंका का समाधान कहाँ करें? देहात में तो चारों तरफ जंगल होता है, खेत होते है पर बम्बई में तो....... एक शंका ने बम्बई की सुन्दरता समाप्त कर दी। गाड़ी हॉटल बिल्डींग सबभूल गया क्योंकि जिधर जाता जिधर देखता आदमी नजर आये। काफी दूर जाने के बाद एक पार्क आया तो वहाँ एक बोर्ड में लिखा हैं, "यहां गन्दगी करना सख्त मना है"। अब उसकी परेशानी ओर बढ़ गयी। आस-पास देखता है, सुनसान है अपना काम कर लूं परन्तु मन कहता है कि किसी ने देख लिया तो बेमौत मारा जाऊंगा। याद रखना, गलत काम करने वाला सदैव भीतर से भयभीत रहता है फिर भी वह साहस करता है देहाती ने अन्दर जाकर अपना काम कर लिया। इतने में दो पुलिस वाले आ गये वह डर का मारा अधमरा हो गया क्या करूं? क्या न करूं? सोचता है कि कहीं ये पुलिस वाले देख लेंगे तो खाल उधेड़ देंगे। हे भगवान! ओर कुछ नहीं सूझा तो आनन-फानन में अपनी पगड़ी उतारकर उसके ऊपर रख दी। पुलिस वहाँ पहुँची और कड़क कर पूछा क्यों यहाँ क्या कर रहे हो? साहब कुछ नहीं वैसे ही आ गया। बम्बई घूमने आया था थक गया तो यहाँ आकर बैठ गया.... पर पगडी क्यों उतारी? साहब गर्मी लग रही थी पुलिस वाले पूछकर आगे बढ़ गये फिर उनके मन में विचार आया, यार यह देहाती है इसका माल लो। वे दोनों दुबारा देहाती के पास पहुंचे और उससे कहते हैं चलो उठाओ अपनी पगड़ी -92 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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