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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भूतकाल को भूलकर अपने भविष्य का जो नक्सा तैयार किया है उसी तरह जीवन को बनाने लग जायेंगे तो भविष्य बन जायेगा। जिन-जिन आत्माओं ने अपने भविष्य को सुधारा है। उन्होंने भूतकालीन भूलों का एकरार करके भूल के शूल को दूर किया है। जो भूल का एकरार कर के भूल को दूर करता है उसी का जीवन अच्छा बनता है। महान नैयायिक प्रखर प्रज्ञावान विश्वनाथ पंचानन भट्टाचार्य ने शिष्य राजीव के लिए न्यायमुक्तावली नामक ग्रन्थ बनाया। एक दिन उन्होने राजीव को पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे थोड़ा थोडा पढ़ते पढ़ते ग्रन्थ पूरा हुआ, फिर उन्होंने पूछा, बोलो अब तुम्हें कुछ पूछना है, कोई सवाल उठ रहा है? नहीं गुरूजी। सब कुछ अच्छी तरह से समझलिया हूँ कुछ भी पूछने जैसा नहीं है। मूर्ख! तुझे पूछने जैसा कुछ नहीं लग रहा है? तेरे अंतर में कोई प्रश्न ही नहीं उठ रहा है तो तूने कुछ पढ़ा ही नहीं है। चल, दुबारा इस ग्रन्थ को पढ़। शिष्य राजीव को पुनः पढ़ाना शुरू किया। पहले पढ़ चूके थे इस कारण से ग्रन्थ जल्दी पूर्ण हुआ। ग्रन्थ पूर्ण होने के बाद फिर वही प्रश्न दोहराया। कुछ पुछने जैसा लग रहा है? हाँ.... कहीं-कहीं पूछने जैसा लग तो रहा है। तुं अब कुछ पढ़ा है, परन्तु अभी भी ठीक से नहीं पढ़ा है, ग्रन्थ को फिर से पढ़ना होगा । पुनः अध्ययन शुरू हुआ। फिर वही प्रश्न! शिष्य राजीव में शनैः शनैः जिज्ञासा उत्पन्न होती है, प्रश्न पूछने का मन होता है। कई बार पढ़ाने के बाद एक दिन उसने कह दिया। गुरूजी अब तो पग-पग पर प्रश्न होने लगे हैं। एक-एक शब्द से मेरा मन प्रश्नों से भर जाता है। वाह! वाह! शाब्बास बेटे शाब्बास! सच्चे अर्थ में अब तुने पढ़ा है। प्रश्न ही नहीं जगे वहाँ वह पढ़ा हुआ क्या काम का? विश्वनाथ पंचाननजी बोले! प्रश्न उठने के बाद समाधान मिलने से ज्ञान निःशंक बनता है। ज्ञान मनुष्य पढ़ सकता है, सोच सकता है और आचरण भी कर सकता है। कंठस्थ करने से नहीं हृदयस्थ करने से ज्ञानि कहे जाते हैं। ___ जादुगर स्कूल में पढ़ रहे बच्चों के सामने खेल दिखाने लगा। बच्चे इकट्ठे हो गये। जादुगर ने पहले जलता अंगारा मुँह में डाला, फिर कागज, %3 188 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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