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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जरा सोचो क्योंकि वह सौ अरब संग्रह करना चाहता था। फुर्सत नहीं थी, मरते वक्त दुःखी था जितना कमाना चाहता था। नहीं कमा पाया । कहाँ दस अरब और कहाँ नब्बे अरब । पुत्रसंज्ञा । सभी दम्पति को पुत्र की इच्छा तो रहती ही है। जिनके पुत्र नहीं होता उन्हें ही पता होता है कि पुत्र की इच्छा क्या होती है और पुत्र का न होना कितना दुःख पूर्ण है। लोग पुत्र पाने के लिए तो कहाँ कहाँ जाया करते हैं और कैसी कैसी मिन्नते रखा करते हैं। एक घर में ऐसा ही हुआ। शादी किए सात वर्ष हो गये थे, पर उनके कोई संतान नहीं थी। एक दिन एक ज्योतिषी ने उनकी जन्म कुंडली देखकर बताया कि दो वर्ष बाद तुम लोगों को पुत्र प्राप्त होगा। दोनों खुशी में फूले न समाये । वे अपने पुत्र के लिए अनेक तरह की पूर्व योजनाएँ बनाने लगे। पति ने कहा पुत्र प्राप्ति के उपलक्ष में हम एक भोज का आयोजन करेंगे। पत्नी ने कहा कई वर्षों बाद इस कुल में पहला पुत्र होगा। हम आगन्तुकों को जाते समय थाल भी भेंट करेंगे। ताकि सब लोग याद रखेंगे। उन नामों की सूची बना ली गई, जिन को भोज में आमन्त्रित करना था। जिस दिन पुत्र जन्म हुआ उस दिन उस दंपति की खुशी का ठिकाना नहीं था। लड़का पढ़ा लिखा बड़ा हुआ, जवान हुआ। लड़के के लिए लड़की देखना शुरू किया। एक बड़े नगर में एक दुकान खुली। उसमें कुछ माल नहीं था। उपर एक बड़ा सा बोर्ड लगाया जिस पर लिखा था-यहाँ वधुओं की छंटनी होती है। वह लड़का वहाँ पहुँचा तो दरवाजा बंद पाया। दरवाजा खोलकर वह अन्दर गया वहाँ उसे दो दरवाजे मिले । एक पर लिखा था “काली लड़की" और दूसरे पर लिखा था "गोरी लड़की" | लडके ने गोरी लडकी वाला दरवाजा खोला। आगे उसे दो और दरवाजे नजर आए। एक पर लिखा था- "दिन भर काम करने वाली” तथा “दूसरे पर आराम करने वाली' | युवक ने दिन भर काम करने वाली का दरवाजा खोला। वहाँ दो दरवाजे और नजर आए। एक पर लिखा था-"एम.ए.पास" और दूसरे पर लिखा था-"अनपढ़" | लड़के ने एम.ए. पास वाला दरवाजा खोला। वहाँ फिर उसे दो दरवाजे नजर आए। एक पर 74 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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