SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सचमुच ऐसा बंगला हमने नहीं देखा। आपने बढ़िया महल जैसा बंगला बनाया है। लोग प्रशंसा करने लगे, भला वे क्यों न करें। यदि प्रशंसा के दो शब्द कहने से भोज का आयोजन होता हो तो लोग प्रतिदिन सबकी प्रशंसा करेंगे। मकान मालिक की काफी प्रशंसा हुई। सब लोग भोजन कर चले गये। रात को थका हारा वह आदमी गद्दी/बिस्तर पर तो लेट गया पर नींद न आयी। प्रशंसा की भूख अभी तक शांत न हुई थी। दूसरे नगरों/शहरों में अभी तक उसकी प्रशंसा की हवा नहीं पहुंच पायी थी। शायद आधी रात तक वह यही सोचता रहा सुबह उठा विचार आया कि किसी ऐसे घुमक्कड़ आदमी को पकड़ लिया जाय, जो पद यात्रा करता हो, गाँव-गाँव जाता हो, क्योकि घुमक्कड़ आदमी जहाँ-जहाँ जाता है, वहाँ-वहाँ अपने अनुभव कहता है। जब वह अपना अनुभव कहेगा तो मेरा नाम अवश्य आएगा । वह आदमी घुमक्कड़ की तलाश में निकल पड़ा। कहीं किसी जगह उसे एक साधु मिल गए। सोचा कि यह बिल्कुल ठीक घुमक्कड़ आदमी है। इस से सस्ता प्रचारक नहीं मिलेगा। दो रोटी से ही काम हो जाएगा। वह साधु के पास गया, कहा-भगवन्! बड़ी कृपा होगी आप यदि मेरे घर आहार के लिए पधारेंगे। साधु तो आहार चर्या के लिए ही निकले थे। उन्होंने सोचा जब निवेदन किया जा रहा है- भक्त आ गया है तो मुझे इनके वहाँ जाना चाहिए । घर पहुँच कर मकान मालिक ने कहा- भगवन्! मेरी एक विनती है। विनती यह है, मैं चाहता हूँ कि आपकी चरणरज इस बंगले (मकान) के हर कमरे में पड़े, तो मेरा बंगला बनाया हुआ सार्थक हो जाएगा, यह बंगला पवित्र हो जाएगा। साधु ने कहा मैं आहार के लिए आया हूँ, तुम्हारे भवन घूमने के लिए नहीं अगर आहार उपलब्ध हो तो मैं ले लूँ, अन्यथा आगे प्रस्थान करूं, परन्तु शेठ ने अत्यधिक आग्रह किया तो साधु ने शेठ की बात मानली और उसका अनुशरण किया। मकान मालिक एक-एक कमरे की प्रशंसा करने लगा। इस कमरे में मैंने कोटा स्टोन लगाया हैं। इस कमरे का संगेमरमर बड़ा चमकीला है। क्या आपने कभी ऐसा मकान देखा है। आखिर दिखाते दिखाते जब बाथरूम में पहुँचे तो उसने बाथरूम की भी प्रशंसा के पुल - 61 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy