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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तनिक सोच ..... जैनजगत् में उपाध्यायजी महाराज के प्रिय नाम से सुप्रसिद्ध पूज्य यशोविजयजी म. ने बहुपयोगी कई संस्कृत ग्रन्थ रचे है और गुर्जर भाषा में भी उन्होंने कई रचनाएँ की है, उनमें एक अध्यात्मसार नामक ग्रन्थ भी है। इसी ग्रन्थ के आत्मानुभवाधिकार नामक बीसवें अधिकार के अन्त में आत्मसाक्षात्कार करके मनुष्य जीवन सफल बनाने की इच्छा वाले साधकों को बहुत ही बढ़िया योग्य और सर्वहितकर ऐसी उन्नतीस शिक्षाएँ दी है। कहना होगा कि उपाध्यायजी महाराज ने इस आत्मानुभवाधिकार रूपी गागर में सागर भर दिया है। प्रस्तुत किताब में कुल उन्नतीस शिक्षाएँ है। ससुराल विदा हो रही पुत्री को माँ जिस तरह हितशिक्षा देती है, वैसे हमें भी उपाध्यायजी ने संसार रूपी ससुराल में कैसे रहना उसकी प्रिय शिक्षाएँ दी है। आत्मकल्याण के लिए प्रत्येक शिक्षाएँ ग्रहणीय है। शिक्षाओं पर विवेचन प्रस्तुत करके, ज्ञानार्थिजनों तक पहुँचाने का प्रयास भर किया है। अतः इसमें जो कुछ शुभ है उसके लिए सुग्रहित जिनेश्वरों की कृपा और परम श्रध्धेय मेरे गुरूभगवन्तों का अनुग्रह ही कारणभूत है मुझे आशा है कि यह किताब वाचकों को जीवन की सही दिशा और प्रकाश देगी। वाचक शिक्षाओं को पढ़ और सोचकर जीवन में उतारेगा तो मेरा यह प्रयास सार्थक गिना जाएगा। विवेचन करने में कहीं कोई त्रुटि रह गई हो, आशय स्पष्ट न हुआ हो, स्खलना, अज्ञान व प्रमादवश जिनाज्ञा के विपरीत कुछ भी लिखा गया हो तो हार्दिक मिच्छामि दुक्कड़म्। मुनि महेन्द्र सागर 13-11-05 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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