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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्नि की भट्टी है उस में तपकर ही कंचन/कुंदन रूप में बाहर आ सकते हो। कुंदन को अग्नि का भी उपकार मानना चाहिए। जो उसे शुद्ध करके कीमती बनाती है और दुनिया के सामने लाती है। सज्जनों को ऐसे द्वेषी दुर्जनों को धन्यवाद देना चाहिए। जो लोग उनके धैर्य और सत्व की परीक्षा करते हैं। जिन लोगों ने राम जैसे की भी धुलाई की थी, वो आपको कैसे और क्युं छोडेंगे? ये तो दुर्जन लोगों की आदत ही होती है। सभी टीकाएँ गलत ही होती है, ऐसा भी नहीं हैं, कभी सच्ची और योग्य टीकाएं भी होती है। टीकाओं में जीतना सत्य हो उसका स्वीकार कर लेना चाहिए। बहुत बार यह तो दुर्जनों का बकवास है। वे तो बोलते रहते है। हमें अपना काम करते रहना चाहिए। हाथी चलत बाजार, कुत्ता भौंकत हजार, ऐसा सोचकर और बोलकर आदमी, टीका में रही सच्चाई/ सत्यता का भी स्वीकार करने को तैयार नहीं होता है। ये बिलकुल ही गलत है, जरा भी योग्य नहीं है। आप अच्छे कार्य करते हो। आप अपनी पुण्याई के कारण सफल भी हो रहे हो परन्तु उसका यह अर्थ नहीं कि आप के कार्य पूर्णतः त्रुटि/भूल बिना के है। आप अपने कार्यों को भूल बिना के मानने लग जाओ, यही तो आपकी सबसे बड़ी गलती है। अगर टीका में सत्यांस हो तो उसे मानकर कार्य को भूल रहित करना चाहिए और यदि टीका में कोई तथ्य नहीं है तो उद्विग्न भी मत होइए। दुर्जनों की टीका से अगर नाराजगी होती हो तो सज्जनों को समझ लेना चाहिए कि अभी भीतर मान की अपेक्षा है। मान-सम्मान की अपेक्षा का भंग होता दिखता है तभी गुस्सा आता है। यहाँ सम्मान की बात जाने दो, परन्तु उसकी जगह पर निंदा होती है इसलिए क्रोध आने की शतप्रतिशत संभावना है। याद रखो निंदा या नाराजगी सज्जनता की कमी है। इसे स्वीकारना चाहिए। भगवान महावीर स्वामी के सामने गोशालक जैसे कितने ही लोगों ने बकवास की थी। प्रभु ध्यानस्थ एक वृक्ष तले खडे है। कोई अनाड़ी आदमी वहाँ आकर कहता है। यहाँ क्यों खड़े हो? यह तो हमारे जाने का रास्ता/मार्ग है। हट जाओं यहाँ से। प्रभु शब्दों को सुनते है और जैसे वहाँ कुछ हुआ ही नहीं है, वहाँ से धीरे से चल देते है। उस वक्त प्रभु का चेहरा 41 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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