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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नहीं दे रहा था। उसे हर आदमी में कुछ न कुछ बुराई-दुर्गुण नजर आ रहे थे। अगले दिन युधिष्ठिर ने राज सभा में प्रवेश किया और उसने वह पन्ना महाराजा को सौंप दिया। युधिष्ठिर के द्वारा जो पन्ना महाराज को दिया गया था। वह पन्ना खालिस कोरा था। कृष्ण महाराजा ने आश्चर्य से पूछा- क्यों युधिष्ठिर! नगर में गये नहीं अगर गये थे तो घूमें नहीं? युधिष्ठिर बोलेमहाराज! मैं कल बहुत घूमा हूँ, सुबह से शाम तक घूमा हूँ, परन्तु पुरे नगर में मुझे एक भी दुर्जन व्यक्ति दिखाई नहीं दिया। मुझे तो प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ गुण दिख रहा था। अरे! जिसमें एक भी सद्गुण हो उसे मैं दुर्गुणी कैसे मान लूँ? युधिष्ठिर की गुण दृष्टि से महाराजा खुश हो गए। थोडी देर बाद दुर्योधन ने राजसभा में प्रवेश किया। उसने भी जो पन्ना हाथ में लेकर गया था वापिस महाराज के हाथ में सौंप दिया महाराजा ने देखा तो पन्ना पुरा भरा हुआ था। तस्सुभर भी जगह नहीं थी। दुर्योधन ने कहा स्वामिन! आपको क्या बताऊं, इस दुनिया में सभी लुच्चे और लफंगे लोग हैं। बाहर से उजले दिखते है परन्तु अन्दर से तो काले ही है। कृष्ण महाराजा ने कहा : (सोचा), जिसकी दोष दृष्टि होती है उसको सब बुरा ही नजर आ रहा था, उस युधिष्ठिर को कोई गुणहीन नहीं दिखा और उस दुर्योधन को कोई गुण सहित नहीं दिखा। अपने में आज भी वो दुर्योधन वाली आंखे जड़ी हुई है। हमें गुण सहितता कम ही दिखती है। सर्वत्र दोष और दोष दिखते है। जैसे चील की नजर मरे हुए पशु पर, मक्खी की नजर घाव पर, कुत्ते की नजर हड्डी के टुकड़े पर, और सुअर की नजर विष्टा पर होती है, उसी प्रकार दोष दृष्टि वाले की नजर हमेशा दोष पर ही होती है। गुण देखने की नजर नहीं होगी तो गुण कैसे दिखेंगे? गुण दिखेंगे नहीं तो बहुमान किसका करेंगे? गुणीजनों का बहुमान तो तिजोरी की वह चाबी है जिसकी प्राप्ति होने पर गुण रूपी खजाने की प्राप्ति होती है। अपने से छोटे व्यक्ति में रहे गुण का बहुमान अनुमोदन और प्रशंसा करनी चाहिए। इसी बात को जैन धर्म में उपबृहणा कहा हैं। अपने से भी छोटे व्यक्ति के गुण की प्रशंसा करने से उस व्यक्ति का उत्साह बढ़ता है और ऐसे प्रोत्साहन से उसका 24 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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