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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करके उस पारसमणि को प्राप्त कर लूँ। जिससे संपूर्ण जिदंगी मुझे आराम हो जाय। शिवराम ने संत तुकाराम की शरण स्वीकार की। सतत छ: महिने उसने सेवा की । पर अफसोस वह तन से सेवा करता था, परन्तु उसका मन उसकी आँखे तो पारसमणि को खोज रही थी। छह महिने खोजने पर भी पारसमणि नहीं दिखी, इसीलिए उससे रहा न गया। एक दिन उसने हिम्मत कर के पूछ ही लिया। संतजी! आपके पास जो पारसमणि है वो मुझे दिखाओ न, संत तुकाराम ने कहा : शिवराम! मेरे पास तो पारसमणि नहीं है। मेरे पास तो अखंड रसमणि है। अगर तू कहे तो तुझे दे दूं। मुझे आपकी ये गुढ़भाषा समज में नहीं आ रही है। बात को स्पष्ट करके कहो न! तुकाराम ने कहा- प्रभु का नाम, प्रभु का स्मरण प्रभु की भक्ति यही अखंड रसमणि है। उसके प्रभाव से ही सब कुछ संभव होता है। इसके सिवा मेरे पास कोई ओर मणि नहीं है। शिव राम ने संत के चरणों में सिर झूका दिया। उसके हृदय का परिवर्तन हो गया। आँखों से बहते आंसू ही बता रहे थे। एक समय का कट्टर दुश्मन संत तुकाराम का परम भक्त बन गया। - 21 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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