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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिद्रूपानन्द मे दुर्भाव्यम् "ज्ञानानंद से मस्त होकर रहना" इस लोक में अनन्त जीव हैं। सबकी कामनाएँ, इच्छाएँ, आकांक्षाएँ जरूरतें भी भिन्न-भिन्न होती है, इस कारण से उनकी सोच उनका प्रयास और आविष्कार अलग-अलग होते हैं। जैसे कि कोई उड़ता हुआ भँवरा मधुर पराग से भरे किसी खिले हुए पुष्प को ढुंढ़ता है। उड़ता हुआ परवाना जगमगाती ज्योति से भरे किसी दीप को ढूंढ़ता है। उड़ता हुआ हंस मुक्ताओं से भरे किसी जलाशय को ढूंढ़ता हैं। जाती हुई भैंस किसी किचड़ वाला डबरा देखती हैं। घूमता हुआ सुवर किसी गंदीनाली को ढूंढ़ता है। घूमता हुआ गधा किसी राख/ खाक को देखता है। घूमता हुआ कुत्ता किन्हीं हड्डियों को देखता है। वैसे ही मैं आप से कह रहा हूँ कि आप भी ढूंढ़ों किसी आनन्द और ज्ञान से भरी हुई आत्मा को। दुष्ट आत्मा को नहीं यदि आप आनन्दी और ज्ञानी आत्मा का सामीप्य पा लोगे तो आप भी आत्मानन्दि बन जाओगे, आप भी कृतकृत्य हो जाओगे। यदि दुष्ट आत्मा का सामीप्य पाओगे तो घूमते रह जाओगे। कबीर घुमक्कड़ थे। मस्ताना, मस्तमौला थे। उन्होंने घूम-घूमकर जगह-जगह अपनी अनुभूतियाँ बाँटी। कबीर घूमे, खूब घूमे और घूम-घूमकर सारे समाज में वाणी का अमृत बाँटा, वाणी बाँटकर सारे समाज में अलख जगाई, फिर उनकी वाणी जन मानस में घर कर गई और फिर जन-जीवन में प्रकाश का काम कर गई। वे बिलकुल फक्कड़ थे, और फकीर ही फक्कड़ होते हैं। जो किसी की परवाह न करे वही तो फक्कड है, जो किसी की चापलूसी न करे वही तो फक्कड़ है। वे ही तो अपनी निजी मस्ती में रहने वाले होते है। कबीरा खड़ाबाजार में, लिए मुराड़ा हाथ। जो घरजाले आपना, चले हमारे संग।। कबीर हाथ में मशाल लेकर बाजार में खड़े है, लोगों से कह रहे हैं कि जो अपने घर को छोड़ सकता है, जो अपने घर को भी जलाने की हिम्मत 222. For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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