SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आओ। एक भी टुकड़ा रह न जाय उसका ख्याल रखना। वह आदमी तो विचार में डूब गया। उसे दिन में ही तारे दिखने लगे। उसने कहा- गुरूदेव! यह कैसे हो सकता है? संत ने कहा- अगर यह नहीं हो सकता तो निंदा का प्रायश्चित्त भी नहीं हो सकता। निंदा एक ऐसा भयंकर पाप है जिसका प्रायश्चित्त होना मुश्किल है। क्योंकि आज तक जिन-जिन लोगों की निंदा करके लोगों के कानों में जो जहर डाला है...... उस जहर को कानों से फिर कैसे निकाल सकोगें? क्योंकि तुम उन सभी को पहचानते हो? क्या तुम उन सभी को अपनी भूल का इकरार करने के लिए एक जगह पर इकट्ठे कर सकोगें? एक बार निंदा रस पीने की आदत हो जाने पर निंदक किसकी निंदा नहीं करेगा। यह एक सवाल है। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत तुकाराम ने कहा हैजिस घर में संत निंदा है, वह घर नहीं अपितु स्मशान है। इतना सुनकर निंदा के पाप से छुटेंगे तो शुभ होगा। निंदा का रस न छूटे तो भी कोई बात नहीं निंदा जरूर किजिये, परन्तु अन्य की नहीं अपनी खुद की ही निंदा किजिये। --- - 15 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy