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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वेष, प्रतिकूल और अनुकूल सभी परिस्थितियों में बेदाग रहो, बेअसर रहो, एक भाव रहो। यही तो महत्त्वपूर्ण है। आत्म साधना के मार्ग में आगे बढ़ने के लिए चित्त की स्थिरता अत्यावश्यक है। जिसका चित्त अस्थिर है, वह साधना मार्ग में कभी भी प्रगति नहीं कर सकता है। एक बालक किसी एक घर की डोर बैल बजाना चाह रहा था, परन्तु उसका हाथ वहाँ तक पहुँच नहीं पा रहा था। वह कुदकर (उछलकर) बैल बजाने की कोशिश कर रहा था। तभी वहाँ से एक बुजूर्ग आदमी निकलते है। तब उस बालक ने उनसे कहा- अंकल! बैल बजवा दो न! बुजूर्ग ने उसे ऊपर उठाया, तब उसने बैल बजाई, किन्तु दरवाजा खुले उससे पहले ही वह बालक वहाँ से भाग गया कि चलो मैं भाग जाता हूँ । कहीं कोई देख न लें। यहाँ उस बुजूर्ग की क्या हालत हुई होगी आप सोच सकते है। वैसे ही मन तो संकल्प-विकल्प करके भाग जाएगा, किन्तु आत्मा की क्या हालत होगी आप सोच सकते हैं। कुविचार-कुविकल्प मनुष्य के विनाश का कारण बनते हैं, क्योंकि सतत् या बार-बार कुविचारों के सेवन से आदमी आज नहीं तो कल कुकर्म में प्रवृत्त हो जाता है। आज जो कुकर्म, कुप्रवृत्ति में दिख रहा है, उसने बिते हुए कल में जरूर से कुविचार किये होंगे, और जो आज कुविचारी और कुविकल्पी है, कल अवश्य ही कुकर्म का सेवन करेगा। आज जो अच्छे कर्म कर रहा है उसने कल अच्छे विचार कियें होंगे और आज जो सुविचार कर रहा है वह कल जरूर से सत्कार्य करेगा। सुविचारों के विषय में हम सभी दरिद्र है। उससे भी अधिक दुःखद बात तो यह है कि वह दरिद्रता हमें खटकती नहीं है। गंदे और फटे हुए कपड़ों से हमें शर्म आती है, जैसे तैसे घर में रहना भी हमें अच्छा नही लगता। ऐसे-वैसे चप्पल भी हमें अच्छे नहीं लगते हैं, परन्तु जैसे-तैसे विचारों से, नहीं तो हमें शर्म आती है और सुविचारों के लिए प्रयत्न भी नहीं करते हैं। अच्छे-कपड़े, अच्छा घर, अच्छे चप्पल आदि की तरह अच्छे विचारों की भी सुन्दरता है। सुविचार हमारा परम मित्र है,क्योंकि यह ऐसा साथी है जो कभी धोखा नहीं देता, आपका कभी अहित नहीं करेगा। सुविचारों %3-200 - For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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