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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जायेगा। यह तो दुःख का ही दूसरा नाम है। सांसारिक सुख को सुख कहना यह सुख शब्द की तौहीन है। फिर भी यह कहा जाने वाला सांसारिक सुख कब तक टिकेगा? पुण्य रहेगा तो मृत्यु तक टिकेगा, किन्तु बाद में? या तो आप सुख को छोड़ जाओगे या सुख आपको छोड़ चलेगा, चाहे कुछ भी हो सुख का वियोग तय है। हमें अविनाशी सुख चाहिए, कभी न जाए वैसा सुख चाहिए। लेकिन संसार के समस्त सुख विनाशी है। मोक्ष सुख एक बार मिलने के बाद जाता नहीं है, तभी तो अविनाशी है। ऐसा सुख मोक्ष के अलावा कहीं नहीं मिल सकता हैं। (4) किसी के अधीन होकर जीने की हमारी इच्छा नहीं है। परन्तु संसार में तो पराधीनता ही पराधीनता है! विद्यार्थी को शिक्षक की, पुत्र को माँ-बाप की, नौकर को शेठ की, सेवक को राजा की, राजा को प्रजा की, सैनिक को सेनापति की, बीमार को डॉक्टर की, यूं सभी को किसी न किसी की गुलामी/पराधीनता स्वीकार नी ही पड़ती है। और कोई पराधीनता न सही परन्तु कर्म की गुलामी तो है ही। इस गुलामी से कोई भी मुक्त नहीं है। चक्रवर्ती बड़े शहंशाह भी मुक्त नहीं है, चक्रवर्ती भी आखिर कर्माधीन है। कर्मरूठे तो श्रेणिक राजा को भी बेटा कारागृह में डालता है। श्री कृष्ण को भी पानी के लिए जंगल में तड़पना पडता है। राम को भी वनवास जाना पड़ता है। आदिनाथ भगवान को भी चार सौ दिन तक भूखा रहना पड़ता है। इनसे मुक्त होने का एक ही उपाय है। मोक्ष, सभी को परेशान करने वाली कर्मसत्ता सिद्धों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती है। (5) सब मेरे अधीन रहे ऐसी इच्छा जरूर है, परन्तु घर में बेटे भी अधीन नहीं रहते तो औरों की तो बात ही क्या करे। हाँ समस्त जगत मोक्ष में स्थित सिद्ध भगवंतो के अधीन है। इस तरह हमारी पाँचों ही इच्छाएँ मोक्ष में जाये बगैर पूरी ही नहीं हो सकती। मोक्ष में क्यों जाना चाहते हो? ऐसा कोई पूछे तो कहना कि पाँच प्रकार की इच्छाएँ मोक्ष में ही पूरी हो सकती है इसलिए मोक्ष में जाना चाहता हूँ। आत्मा सुखमय है इस कारण से सुख की इच्छा होगी ही। आत्मज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई ज्ञान नहीं। आत्मलाभात् परो लाभो नास्तीति मुनयो विदुः । आत्मज्ञान रूप ध्येय को नजर For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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