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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हो? युवक ने कहा- नौकरी के लिए। प्रश्नकर्ता ने फिर पूछा-नौकरी क्यों चाहते हो? युवक ने कहा पैसा कमाने के लिए | आपसे भी अगर पूछा जाय कि आपके जीवन का ध्येय क्या है? आप इतनी भाग दौड़ क्यों कर रहे हो? कोई आपसे ऐसा ही सवाल करे तो आप क्या कहोगे? आप यही कहोगे कि दौड़ धूप नहीं करेंगे तो पैसा कहाँ से आएगा? प्रश्नकर्ता ने उस युवक से फिर पूछापैसा क्यों चाहते हो? उसने कहा- खाने के लिए। प्रश्नकर्ता ने एक बार फिर पूछा- खाना क्यों चाहते हो? उसने कहा- जीने के लिए। आपसे भी पूछा जाय कि खाना क्यों खाते हो? तो आप भी यही जवाब दोगे कि खाएंगे नहीं तो जीएंगे कैसे? अतः जीने के लिए ही खाते हैं (कई लोग तो सिर्फ खाने के लिए ही जीते हैं) प्रश्नधारा अभी रूकी नहीं है। प्रश्नकर्ता ने पूछा- फिर जीना क्यों चाहते हो? उसने कहा- क्योंकि मैं आत्महत्या करना नहीं चाहता इसलिए जी रहा हूँ। लोग कहते है कि हममें मरने की हिम्मत नहीं है इसीलिए जी रहे हैं। लड़के को अगला प्रश्न पूछा- आत्महत्या क्यों नहीं करना चाहते हो? उसने कहा- धर्म करने के लिए। प्रश्नकार ने अगला प्रश्न पूछा- धर्म क्यों करना चाहते हो? वह लड़का उत्तर नहीं दे पाया वहीं ठहर गया। अब मैं ही आप से पूछ रहा हूँ कि आप धर्म क्यों कर रहे हो? मोक्ष के लिए ही न! और एक प्रश्न पूछ लेता हूँ– मोक्ष क्यों चाहते हो? यहाँ संसार में आपको क्या कमी है? हरा भरा संसार है, लाडी, गाड़ी और वाड़ी सब कुछ ही तो है। सवारी करने के लिए हवाई जहाज है, रेलगाड़ी है, मोटरगाड़ी है, दुपहिया गाड़ी है। रहने के लिए घर मकान है। सोने के लिए पलंग-बिस्तर है। पहनने के लिए कपड़ा-लता भी है। घूमने के लिए हिलस्टेशन, बाग-बगीचे हैं । खाने के लिए घर तो है ही इसके अलावा हॉटल भी है। सेवा करने वाले नौकर भी है। यहाँ संसार में जो है, मोक्ष में नहीं है। वहां खाने पीने के लिए मिठाईयाँ नहीं है। सरबत भी नहीं है, फिर वहां जाकर करोगे क्या? तो मेरा प्रश्न है आप मोक्ष में क्यों जाना चाहते हो? आप कहोगे जन्म, जरा मृत्यु आदि से छुटने के लिए मोक्ष चाहते हैं। किन्तु आपका यह जवाब सबके दिमाग में बैठे वैसा नहीं है। क्योंकि कइयों को =184D For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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