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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अपना स्वामित्व मान लेना कितना बड़ा अपराध हैं? दुनिया में भी किसी अन्य की वस्तु पर अपनी मालकियत करने वाले व्यक्ति को कारागृह की सजा होती हैं। तो फिर जो शरीर अपना नहीं है, उस शरीर को अपना मान लेना, कितना बड़ा अपराध होगा? यह अपराध प्रत्येक भव में करते आये हैं और इस भूल की सजा हर भव में भोगते आए हैं। शास्त्रिय परिभाषा में इसे बहिरात्मदशा कहते हैं। देह में आत्मबुद्धि, बहिरात्म दशा का लक्षण है। यहाँ आत्मा का महत्त्व कम हो गया है, क्योंकि उसने मन, वचन, काया से सम्बन्ध जोड़ रखा है । पहला सम्बन्ध शरीर से जोड़ रखा है। शरीर मेरा है, मैं शरीर रूप हूँ। यह मानने के बाद उस ने अन्यों के साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने शुरू कर दिए। धीरे-धीरे वह सम्बन्ध वचन के साथ जुड़ गया और आगे यह सम्बन्ध मन के साथ भी जुड़ गया। ज्ञानी कहते हैं कि जब तक आत्मा और मन का सम्बन्ध न टूटेगा आत्मा बहिरात्मा में ही जीती रहेगी, उसका सम्बन्ध संसार के साथ जुडा रहेगा, आत्मा का सम्बन्ध आत्मा के साथ नहीं जुड़ पाएगा। इसका कारण यह है कि उसकी सारी क्रियाएँ मनोनुकूल होती रहेंगी, वह स्थिति बहिरात्मपन कहलाती है। मन फिर छंटनी शुरू करेगा। कहाँ फूल और कहाँ शूल, कहाँ सुगंध और कहां दुर्गध । जब तक मन का सम्बन्ध जुड़ा रहेगा, तब तक कानों को अच्छे शब्द सुहाएँगे, आंखों को अच्छे दृष्य अच्छे लगेंगे। जिह्वा को अच्छे स्वाद भायेंगे और शरीर को कोमल स्पर्श सुहाएगा, क्योंकि हमारा बाहर का सम्बन्ध मन से जुड़ा है। मन में ही जी रहे है। ज्ञानियों ने कहा आत्मा की तीन स्थितियाँ है। पहली है बहिरात्मा जो व्यक्ति संसार में जी रहा है, मन के परिणामों के लिए जी रहा है। अंतरात्मा वह है जो शरीर से छुट गई है, वचन से छुट गयी है तथा मन से छुटने का प्रयत्न कर रही है। वह आत्मा में प्रवेश कर रही है। मन, वचन, काया इन तीनों को समाप्त कर जो आत्मा पर अरोहण कर रहा है, दरअसल वही आत्मा के स्वरूप को जान पाया है। तीन दशाएं है (1) व्यक्ति कीचड़ में पैदा हुआ है और वहीं मर गया। (2) आदमी पैदा तो कीचड़ में हुआ है मगर कीचड़ से उपर उठ गया है जैसे कीचड़ से कमल ऊपर उठ 182 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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