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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org नहीं जाऊंगा? तीन प्रकार से आदमी दुःखी होता है । (1) दुःख आयेगा ऐसी कल्पना करके, (2) दुःख आये तब रो-रो कर पूरा करने से, (3) दुःख जाने के बाद उसे याद करके। अगर एक बार सम्यत्व प्राप्त हो जाये तो अनंत पुद्गल परावर्तन कालरूप जो संसार है वह नाश होगा। सिर्फ एक अंतर्महूर्त भी सम्यक्त्व स्पर्श कर जाय तो वह आत्मा अर्धपुद्गल परावर्तन काल में अवश्य ही सिद्ध गति को पायेगी । सम्यक्त्व की एक झलक काफी कुछ कर सकती है । क्योंकि एक बार सम्यक्त्व स्पर्श कर जाये तो, आत्मा का आज नही तो कल, अभी नहीं तो बाद में, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में उसका उद्धार जरूर होगा। सम्यक्त्व के बाद मंजिल का फासला मालुम हो जाता है कि अब इतना ही रास्ता काटना है, कितने भव करेगी यह तो सर्वज्ञ ही बता सकते हैं, लेकिन संसार निस्तार का काल नियत हो जाता है । सम्यक्त्व संसार रूप सागर को चुल्लू भर बना सकता है। कई बार कई लोगों में चर्चा होती है कि फलां के घर में संभवतः धन गड़ा हुआ है - अमुक कोने में है । अगर आप ही के घर में धन गड़ा होगा तो आप उसे निकालने का प्रयत्न करोगे भी या नहीं? भाग्यशालियों! बिना परिश्रम के कुछ भी मिलने वाला नहीं हैं। शायद यह सोचें कि भाग्य में होगा तो यूं ही मिल जाएगा, किन्तु ऐसा नहीं होता । उसे पाने लिए भी पुरूषार्थ करना होता है। ठीक उसी तरह अपने भीतर रहे हुए ज्ञान-दर्शन की शक्ति को प्रगटाने के लिए भी पुरूषार्थ / प्रयत्न आवश्यक है । इसके बगैर यह खजाना मिलने वाला नहीं हैं। कभी-कभी हम सोचते हैं कि यदि खजाना होता तो हमारे बाप-दादा क्यों नहीं निकाल लेते? क्या वे ना समझ थे कि उन्होंने कुछ भी प्रयास नहीं किया? उस घरवाली भौतिक संपदा की बात तो आप जानें किन्तु मैं तो इतना ही कहना चाहता हूँ कि इस प्रकार नासमझ बनकर हम निरन्तर अपनी अमूल्य निधि को खो रहे है। मिले हुए समय को व्यर्थ में ही खो रहे हैं । यह सोचना ही आत्म-वंचना है - धोखा है क्योंकि आपके बाप दादों ने उस खजाने को जाना है, पहचाना है, उसे प्राप्त करने की कोशिश की है और पा कर के अनन्त ज्ञानी, अनन्तदर्शी बनकर 166 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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