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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थातव्यं सम्यक्त्वे “सम्यक्त्व में स्थिर रहना" ___वोटर प्रुफ कपड़े पहने जाय तो व्यक्ति जल के बीच रहने पर भी भीगता नहीं है। फारय प्रुफ कपड़े पहने तो व्यक्ति आग के बीच रहने पर भी जलता नहीं है, बुलेट प्रुफ जेकेट पहना जाय तो व्यक्ति गोली लगने पर भी मरता नहीं है, बस, इसी तरह आत्मा जब निर्मल सम्यग्दर्शन के वस्त्र ओढ़ लेती है तब वह आत्मा सांसारिक सुखों में लिप्त नहीं बनती है। समकितरत्न के प्रति रूचि जगनी चाहिए। वचन दो प्रकार के हैं। (1) तीर्थंकर परमात्मा प्ररूपित और (2) सामान्य मनुष्य द्वारा प्ररूपित । एक जिन वाणी हैं, और दूसरा जनवाणी है। तीर्थकर परमात्मा के वचानानुसार आचरण को सम्यक्त्व कहते है। कदाचित् आचरण न भी हो सकता हो, फिर भी परमात्मा के वचनों पर श्रद्धा रखना भी सम्यक्त्व है। जिनेश्वर के वचनों से विरूद्ध और अपने मन के विचारानुसार आचरण और श्रद्धा मिथ्यात्व है। सम्यक्त्व को सम्यग्दर्शन भी कहते हैं। यह धर्म का मूल माना गया है। इसके बगैर धर्म टिक नहीं सकता। क्रोध के अनुबंध से परंपरा से ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तपादि पर विपरीत असर होता है। मर्यादितकाल के बाद समकित चला जाता है और जीव मिथ्यात्वग्रसित हो जाता है, जिस कारण से वह जिनेश्वर के मार्ग से विरूद्ध आचरण करने लगता है। उनके द्वारा दर्शित मार्ग में किसी भी प्रकार की भूल/त्रुटि नहीं है, क्योंकि वे सर्वज्ञ हैं। और उस मार्ग में पक्षपात भी नहीं है, क्योंकि वे सर्वज्ञ हैं। और मार्ग में पक्षपात भी नहीं है, क्योंकि वे वीतरागी हैं। साधना काल में जिनेश्वर के हृदय में यही भावना रहती है कि मैं सभी जीवों को शासन-रसिक बनाऊं। सब जीवों के दुःख दर्द दूर करूं, सभी जीवों को सुखी करूं, इस भावना के कारण वे हितोपदेशक भी कहलाते हैं। उनकी आज्ञा का पालन करने वाला हमेशा सुखी ही होता है। परमात्मा के वचनों पर श्रद्धा नहीं रखने वाले, अपने आपको बुद्धिमान और हुशियार . -164 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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