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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुने-स्वरों में ऐसा कुछ था कि वह संगीत की दिशा में अपने घोड़े को ले चला। एक पहाड़ी झरने के पास वृक्षों की छाया तले एक फकीर बांसुरी बजाकर नाच रहा था। सम्राट ने उससे कहा तू तो ऐसा आनंदित है जैसे तुझे साम्राज्य मिल गया हो। वह फकीर बोला- दुआकर कि परमात्मा मुझे साम्राज्य न दे, क्योंकि मैं सम्राट हूँ साम्राज्य मिलने से कोई सम्राट नही रह जाता है। सम्राट हैरान हुआ उससे पूछा- जरा बता तो तेरे पास क्या है? जिससे तू सम्राट है। वह बोला संपत्ति से नहीं स्वतंत्रता से व्यक्ति सम्राट होता है। मेरे पास कुछ नहीं है। शिवाय स्वयं के । मेरे पास मैं हूँ। इससे बड़ी कोई संपदा नहीं हैं। मैं सोच नहीं पाता हूँ कि मेरे पास क्या नहीं है जो सम्राट के पास है। सौंदर्य को देखने के लिए मेरे पास आँखे है। प्रेम करने के लिए मेरे पास हृदय है। प्रार्थना में प्रवेश की क्षमता है। सूरज जितनी रोशनी मुझे देता है उससे ज्यादा सम्राट को नहीं। और चांद जितनी चाँदनी मुझ पर बरसाता है उससे ज्यादा सम्राट पर नहीं। फूल जितने सम्राट के लिए खिलते हैं उतने ही मेरे लिए भी खिलते हैं। सम्राट तन भर खाता और पहनता हैं। मैं भी वही करता हूँ। फिर सम्राट के पास क्या है जो मेरे पास नहीं है? शायद साम्राज्य की चिंताएँ। उनसे भगवान बचाएँ बहुत कुछ मेरे पास जरूर है जो सम्राट के पास नहीं है। मेरा अकेलापन मेरी स्वतंन्त्रता मेरी आत्मा । मेरा आनन्द । मैं जो एकान्त में हूँ बडा आनंदित हूँ। इसीलिए सम्राट हूँ। सुनकर सम्राट बोला तू ठीक कहता है। जाओ अपने गाँव में सारी दुनिया से कह दो कि सम्राट भी यही कह रहा है। जंगल में रहने वाला फकीर भी यही कह रहा है। जंगल में रहने वाले फकीर में ये खुमारी यूं ही नहीं आई, सोना जब तपता है तब निखरता है वैसे व्यक्ति एकान्त में रहता है तो उसमें अनेक प्रकार की शक्तियाँ पैदा होती है। परन्तु कभी-कभी एकान्त भी किसी के लिए पतन का कारण बन जाता है। व्यासजी के जैमीनी नामक शिष्य थे। उसने बहुत ज्ञान प्राप्त किया है। एक बार एक ग्रन्थ बनाकर व्यासजी ने जैमीनी को पढ़ने के लिए दिया। जैमीनी के ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम जोरदार था। औत्पातिक बुद्धि है। व्यासजी ने -161 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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