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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गई। लोगों का आना बंद हो गया। साधना के लिए भरपुर समय मिलने लगा। उन्हे आराम हो गया और मजा आ गया। उन दोनों को किसी ने पूछा था आप अकेले-अकेले क्यों रहते हो? और इतनी छोटी सी जगह में क्यों रहते हो? तब उन्होंने कहा था। दूसरा आयेगा तो रति, अरति अर्थात् खुशी नाखुशी होगी। अगर कोई प्रिय आ गया तो खुशी होगी, आनंद होगा और अप्रिय आ गया तो अप्रीति होगी। इतनी छोटी जगह में क्यों रहते हो? उत्तर में कहा था दूसरा कोई आ न सके इसलिए, दूसरे की आवश्यकता क्या हैं? प्रभु और मैं, बात खत्म हो गई। आज मनुष्य की मनोवृत्ति में कितना बदलाव आ गया हैं? उसकी वृत्ति-प्रवृत्तियों में कितना परिवर्तन आ गया हैं? आज मनुष्य का जीव प्रभुमुखी के बजाय लोकमुखी बन गया हैं "प्रभाते प्रभुदर्शनम्" प्रभात में उठते ही सर्वप्रथम प्रभु के दर्शन करें। जबकि आज वह सूत्र बदल गया है। आज तो टी. वी. दर्शनम् हो गया है। तो क्या दूसरे को मिलना भी नहीं? बात भी नहीं करनी? दूर-दूर ही रहना? तो क्या लोकोपकार करना ही नहीं? नहीं, यह बात नहीं है। यहाँ सिर्फ साधना काल की बात है। साधना काल के दौरान भगवान महावीर भी लोगों से दूर रहे थे, परन्तु केवलज्ञान होते ही लोगों के बीच में चले आये थे। लोकोपकार ज्ञानी ही नहीं करेंगे तो कौन करेगा? मर्यादा पुरूषोत्तम राम का नाम सारी दुनिया जानती है। उन जैसा चरित्र, उन जैसा आदर्श, दुनिया के इतिहास में मिलना मुश्किल है। राम को मर्यादा पुरूषोत्तम का दर्जा क्यों दिया? वजह क्या है? राम वन गये तो बन गये। जीवन को आदर्श रूप बनाना हो तो वन जाना जरूरी होता है। भगवान महावीर, गौतम बुद्ध, श्री कृष्ण और वैष्णव परंपरा के महान संत सुखदेव के बारे में कहा जाता है, सुना है, पढ़ा है कि उन्होंने बचपन में ही जंगल की राह पकड़ ली थी। ये सारे महापुरुष अपने को पाने के लिए, अपने को तपाने के लिए अपनी खोज में, वन में गये थे एकान्त में गये थे। वन में जीवन सजता है, वन में जीवन संवरता है वन में जीवन बनता है, जो दिव्यतम् पुरूष हुए हैं, दुनिया जिनके चरणों में शिश झुकाती है, जिनके नामस्मरण के साथ अपने दिन की शुरूआत करती है वो 1591 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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