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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भक्तिभगवति धार्थी "भगवान में भक्ति धारण करनी चाहिए" जैसे नदी के प्रवाह में बहती हुई चीज समुद्र तक पहुँच जाती है वैसे भक्त भी भगवान की भक्ति में बहते-बहते भगवान स्वरूप बन जाता है। मछली के लिए पानी का जितना महत्त्व है, भक्त के लिए भक्ति का उतना ही महत्त्व है। मछली को अगर पानी से बाहर निकाल दें तो वह तड़प-तड़प कर मर जाएगी, उसके लिए पानी ही जीवन है। क्योंकि उसका जनम-मरण पानी में ही होता है। यदि मछली को दुध के तालाब में डाल दो और कहो कि यह दूध है, पानी से भी ज्यादा ताकत इसमें होती है, पानी से भी अधिक कीमति होता है। बड़ा पौष्टिक होता है। अरे! पानी में क्या धरा है, उसमें क्या मजा! पानी में कितना आनंद है वह तो मछली ही जान सकती हैं वैसे भक्ति का आनंद भक्त ही जान सकते हैं। संध्या के समय जब गाय घास खाकर वापिस लौटती है, तब बछड़ा उत्सूकता से राह देखता है और ज्यों ही माँ को देखता है त्यों ही चारो पैरों से उछल पड़ता है, परन्तु वह खीले से बंधा हुआ है, ज्यों ही वह खिले से छूटता है, सीधा माँ के पास जाता है और दुग्धपान का आनंद लेता है। दुग्धपान का आंनद क्या है? (गोवालिया) गोपाल नहीं बता सकता, वह तो बछडा ही जान सकता है। वैसे भक्ति का आनंद भक्त ही जान सकता है, शब्दों में वर्णन नहीं हो सकता। व्यायाम शरीर में रही हुई खराबी को दूर करके तन को तन्दुरस्त करता है। वैसे परमात्मा की भक्ति भी आत्मा में स्थित बुराइयों को दूर करती है। शरीर को सही खुराक नहीं मिलेगी तो शरीर कमजोर व दुर्बल हो जायेगा वैसे आत्मा को भी प्रभु भक्ति रूप पुष्ट खुराक नहीं मिलेगी तो आत्मा की स्थिति भी वैसी ही होगी। घर में सौ (100) वॉल्ट का बल्ब लगा हो, बिजली घर में बिजली का उत्पादन भी होता हो पर यदि बिजली घर के साथ घर में लगे बल्ब का %3 148 m ama For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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