SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org नवकार के प्रभाव से अमरकुमार आबाद रीति से बच गया था। कारण इतना ही था कि भद्राब्राह्मणी को पैसे चाहिए थे, अतः बदले में बेटे को ही दे दिया था । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चलनी माता ने अपने पुत्र ब्रह्मदत्त को जिन्दा जला देने का षडयंत्र रचा था। कारण वह पर पुरूष में आसक्त बनी थी। चाणक्य ने मित्र पर्वत के साथ ठगाई की थी। भरत ने षट्खंड़ के अधिपति बनने के लिए भाई बाहुबलि के साथ बारह बारह वर्ष तक युद्ध किया था। दो भाई थे । उन दोनों में गजब का प्रेम था। एक दिन बड़े भाई ने छोटे भाई को घर पे आने का निमंत्रण दिया। दोनों भाई A. C. युक्त कमरे में एक ही टेबल एक ही थाली में खाना खा रहे थे। बहुत ही आनन्द से दोनों भाईयों ने खाना खाया। और खाना खाने के बाद न जाने क्या बात हुई ? कहीं से आग की चिनगारी आ गिरी। वे दोनों भाई झगड़ पड़े। एक दूसरे को मारने को तत्पर हो गए। एक दूसरे के खून के प्यासे बन गए। मामला अदालत में गया और आखिर वे दोनों भाई जिन्दगी भर के लिए एक दूसरे के दुश्मन बन गए । एक ही माँ के दो पुत्र थे। पहला बेटा हुशियार था और खूब धन कमाता था, दूसरा बेटा कमजोर था, वह धन कमाने में पीछे था। कई बार तो दुर्भाग्य के कारण छोटा बेटा नुक्सान भी कर देता था। कहने के लिए तो एक ही माँ के वे दो बेटे थे। परन्तु उन दोनों के प्रति माँ के व्यवहार में काफी अंतर नजर आता था। बड़े बेटे को वह खूब प्रेम देती थी, उसे वह गर्म-गर्म रोटियाँ खिलाती थी, उसका हर तरह से ख्याल रखती थी, जबकि छोटे बेटे के प्रति उसे विशेष प्रेम नहीं था, उसे वह ठंडी रोटी खिलाती थी । वास्तव में माँ के व्यवहार में भी स्वार्थ की बदबू ही थी। एक ग्वाला गायों को घास डाल रहा था, परन्तु कुछ गायों को हरी-हरी घास खिला रहा था। और गायों को सुखी घास। खोज करने से मालुम हुआ कि जो गायें दूध देती हैं, उन्हें हरी घास खिलाता है और जो गायें दूध नहीं दे रही हैं उन्हें सुखी घास खिलाता है। यह ग्वाले का स्वार्थ है। जिन वृक्षों पर फल-फूल आते हैं, माली उन वृक्षों की भली भांति देखभाल करता है, परन्तु जो वृक्ष फल-फूल नहीं देते उजड़े हुए होते हैं, 138 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy