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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिश्ते कहलाने वाले अनेक संबंध हैं, परन्तु उन संबंधों में स्वार्थ की भयंकर बदबू रही हुई है। जब तक अपना स्वार्थ सिद्ध होता होगा, तभी तक उन संबंधों के बीच प्रेम और वात्सल्य के दर्शन होंगे, परन्तु स्वार्थ पूर्ण होने के साथ ही उन संबंधों के बीच लंबी दरार सी पड़ जाती है। आपके बिना मैं अपने जीवन के अस्तित्व की कल्पना भी नही कर सकती हूँ। इस प्रकार बोलने वाली सूर्यकांता महारानी ने ही अपने प्रियतम प्रदेशी राजा को विष भरा दूध का जाम पीलाकर मौत के घाट उतार दिया था। कितना आश्चर्य! जो प्राण देने के लिए तैयार थी, वही प्राण लेने के लिए तैयार हो गई! कारण ? कारण इतना ही था कि प्रदेशी राजा अब धार्मिक बन गए थे। जबकि सूर्यकांता महारानी को धार्मिकता पसंद नहीं थी । अपना ही खून, बेटे आनन्द ने पिता सिंह राजा को भयंकर कारागृह में डाल दिया था । कारागृह का वातावरण बड़ा ही विषम है, चारों ओर से भयंकर बदबू आ रही है। कोने में गन्दगी के ढेर पड़े हैं। फिर भी सिंह राजा के मुख पर प्रसन्नता है। उनके दिल में एक मात्र इस बात का दुःख है कि समय रहते संयम ग्रहण नहीं कर पाए । परन्तु उस कारागृह में ही भाव से संयम स्वीकार कर उन्होंने चारों प्रकार के आहार का त्याग कर अनशन कर लिया। वे वहाँ रहकर भी आत्म समाधि में मग्न बन गए। कुछ ही देर के बाद भोजन का वक्त होने पर आनन्द ने नौकर के द्वारा पिता सिंह राजा के लिए भोजन की थाली भेजी। परन्तु अणाहारी पद के उपासक सिंह राजा ने आहार ग्रहण करने से इनकार कर दिया। उस नौकर ने जाकर राजा आनन्द को यह बात कही। यह सुनते ही आनन्द राजा क्रोधित हो उठा और बड़बड़ाने लगा, मेरी आज्ञा को भंग करने की हिम्मत? अभी उन्हें खत्म कर दूंगा। क्रोध से धमधमाता हुआ हाथ में नंगी तरवार लेकर आनन्द कुमार कारागृह में पहुँचा और बोला- भोजन स्वीकार.........अन्यथा यह नंगी तलवार तुम्हारा शरकलम कद देगी। बेटे आनन्द के मुख से इस तरह के डरावने कठोर वचन सुनकर भी सिंह राजा ड़रे नहीं, किन्तु मधुर स्वरों में बोले मुझे मृत्यु का भय नहीं है। मौत उनके सामने 136 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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