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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org फल, मेवा, मिठाई, पकवान आदि पदार्थों के स्वाद में किसी तरह का आकर्षण नहीं होता है। स्वादिष्ट और फेवरिट पदार्थों को देखकर रसलोलुप प्राणियों की जीभ में से पानी टपकने लगता है, जबकि उन्ही चीजों को देखकर विरक्त आत्माओं की आंखों में यह सोचकर आंसु आ जाते है कि इन पदार्थों के स्वाद में लुब्ध बनने पर भविष्य में आत्मा की कैसी भयंकर दुर्दशा होगी। मोक्षाभिलाषी आत्माओं को अशुचि की भंडार स्वरूप स्त्री के शरीर - स्पर्श में किसी तरह की सुखानुभूति नहीं होती है। अज्ञानी विषयाभिलाषी और मोहान्ध आत्माएँ स्त्री के भोग आदि में सुख की कल्पनाएँ करती है, जबकि ज्ञानी-योगी और विरक्त पुरूष की आत्मा ज्ञानादि गुणों के भोग में परमानंद की अनुभूति करती है। देह स्नान, तेल, चंदन का लेप, अच्छे अलंकार, सुन्दर कपड़े आदि से विरक्त आत्मा को किसी तरह का राग उत्पन्न नहीं होता है। क्योंकि विरक्त आत्मा इन चेष्टाओं को सर्प के जहर की मूर्च्छा समान मानती है। मोक्ष प्राप्ति में ही जिस आत्मा ने परम सुख की कल्पना की हैं, ऐसी आत्मा को जिस प्रकार इस लोक के बाहय पदार्थों का आकर्षण नहीं होता है, उसी तरह उसे देवलोक सम्बन्धि दिव्य सुखों की भी कोई लालसा नहीं होती है । वास्तव में देवलोक के सुख भी जहर मिश्रित पकवान की तरह सुखदायी नहीं हैं, क्योंकि उन देवताओं को आज जो दिव्य सुख मिले हुए है, उनके वे सुख भी (हमेशा) स्थायी रहने वाले नहीं है च्यवन/मृत्यु का समय करीब आते ही उनकी स्थिति दयनीय व करूण बन जाती है। स्वर्ग के देवों के पास श्रेष्ठ विमान, भवन, उपवन, बावडियाँ/तालाब, रत्न इत्यादि संपत्तियाँ होती हैं, परन्तु मृत्यु के छह महिने पहले कदापि न कुम्हलाने वाली गले की पुष्पमाला कुम्हलाने लगती है। उसके साथ-साथ देवता का मुख कमल भी कुम्हला जाता है, हृदय के साथ-साथ शरीर का ढांचा भी शिथिल पड़ जाता है, देवांगनाएँ भी उसे छोड़कर चली जाती है, उसके वस्त्रों के रंग भी फिके पड़ जाते है। यह सब देखकर देव विलाप करता है कि अब मुझे स्त्री के गर्भावास रूपि नरक में 118 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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