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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir और हीरे के व्यापार में मेहनत कम और कमाई अधिक इस व्यापार में कमाई की संभावनाएँ ज्यादा है। रातोरात धनाढ्य बन सकते है, परन्तु जोखिम भी उतना ही है। मोती हीरे का व्यवसाय करना शिख ले तो मालामाल हो सकते हैं, वरना बरबाद हो जायेंगे। ____काया से होने वाली साधना-आराधना कपड़े के व्यापार जैसी है, तप-ध्यान, काउस्सग्ग (कायोत्सर्ग) सब मर्यादित होता है। सिर्फ कपड़े के व्यापार से धनवान नहीं बना जाता। वैसे अकेले काययोग के सुकर्म से मोक्ष में नहीं पहुँच सकते । काया से पवित्र बनों क्लीनमेन बनो। जिसने अपने जीवन में जान बुझकर अथवा नादानी और अज्ञानता में भूल की हो। युवानी के मद में पाप किये हो। दोस्तों की बातों मे आकर पापाचरण किये हो फिर सच्ची समझदारी आने पर उस रास्ते से लौट आये हो, जीवन में किये सारे पापकर्मों को याद करके जो पश्चाताप, क्षमायाचना करता है। फिर बचे हुए जीवन में पाप का परित्याग करता है वही पवित्र पुरूष कहा जाता है। भगवान महावीर के शासन में एक नहीं अनेक आत्माएँ इस तरह से मोक्ष में गई हैं। घोरातीघोर पाप करने वाले सुबह-सुबह जिनके नाम लिये जाते है। ऐसे इलाचीकुमार, दृढ़प्रहारी, अर्जुनमाली ने 163 दिनों में 1141 स्त्री पुरूषों की हत्याएं (मार डाले थे) की थी। रोहिणे..... चिलातीपुत्र जैसी आत्माएँ उसी भव में मोक्ष गामी बन गई थी। वचन योग को भी पवित्र रखिये शुभ वचन योग कर्म निर्जरा कराता है। प्रभु के गुणगान, गुणियों के गुणानुवाद, गुण की प्रशंसा वाणी से होती है। परमात्मा की स्तुति से अंतरमन धवल बनता है, जन्म-मरण मिटता है। वचन योग के पांच दोष है- (1) कर्कशता (2) निष्ठूरता (3) निंदा (4) मजाक और (5) असत्य । बोलना तो कैसा बोलना! कहा प्रिय-हितकारी और सत्य वचन ही बोलना। एक कहावत है सोने में सुगंध, यानी एक तो सोना हो और उसमें सुगंध मिल जाय तो फिर कहना ही क्या? खूबसुरती अगर सोना है तो मधुरवाणी सुगंध है। दुनिया में ऐसे कितने ही लोग है जो रूपवान जरूर है परन्तु वचन कटु है, जिनके रूप को देखकर हमने संबंध स्थापित किया, परन्तु % -96 For Private And Personal Use Only
SR No.020580
Book TitlePriy Shikshaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrasagar
PublisherPadmasagarsuri Charitable Trust
Publication Year2006
Total Pages231
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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