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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रविचार द्वारं श्रीयशोदे नवकार १ पोरिसीए २ पुरिमड्ढे ३ कासणे ४ गठाणे ५ य । आयंबिल ६ उभत्तढे ७ चरिमे य८ अभिग्गहे वाय प्रत्याला विगई १०॥३८॥ दो चेव नमुकारे आगारा छच्च पोरिसीए उ। सत्तेव य पुरिमड्डे एगासणगम्मि अटेव ॥ ३९॥ ख्यान सत्तेगट्ठाणस्स उ अटेवायंबिलम्मि आगारा । पंचेव अभत्तट्टे छप्पाणे चरिमि चत्तारि॥४०॥ पंच चउरो अभिग्गहि स्वरूपे निविइए अट्ट नव य आगारा । अप्पाउरणे पंच उ हवंति सेसेसु चत्तारि ॥४१॥ पंचपरमेट्टिनमणं नवकारो तेण संजुयं सहियं । जाव नवकारपाढं होइ न पाओवि एयंति ॥ ४२ ।। न य संकेइगतुल्लं एवं एयं मुहुत्तमज्झवि । नवकारपाढमेत्ते न पुज्जई जेणिमं किंतु ॥४३॥ नवकारमुहुत्तेहिं पुज्जइ जम्हा सुए इमं भणियं । अद्धापच्चक्खाणं सूरुदयविसेसणपयाओ ॥ ४४ ॥ पोरिसिपच्चक्रवाणे सूरुदयविसेसणेण जह पढमा । पोरिसि लब्भइ एगा पढममुहुत्तो तहेहंपि ॥४५॥ सुत्ते अविसेसेवि हु मुहुत्तअवहीए कारणं एत्था । अइधोवागारत्तं थोवे काले मुणेयब्वं | ॥ ४६ ॥ पोरिसिमाईयाणं मुहुत्तविरहेण लहुयरो अवही । अन्नो न कोइ भणिओ तम्हा गाहा इमा तत्थ ।। ४७॥ अद्धापच्चक्खाणं जं तं कालप्पमाणछेएणं । पुरिमडपोरिसीहिं मुहुत्तमासद्धमासेहिं ।। ४८॥ तम्हा मुहुत्तविगमे | नवकारे भासिए हवइ पुण्णं । एवं पच्चक्रवाणं तत्थ य सुत्त इमं नेयं ।। ४९ ॥ उग्गए सूरे नमुक्कारसहियं पच्चक्खाइ, चउविहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं, अन्नत्थऽणाभोगणं सहसागारेणं वोसिरह । ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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