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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वीये श्रीयशोदे-पडिवज्जइ वियप्पमेत्तेण उस्सुगो संतो। अहवा सुत्तं भणिउं ससक्खिगंचेव थिरचित्तो ॥११॥ जिणबिंबसक्खिगाविधिद्वार वा ठवणायरियस्स अहव पच्चक्खं । गिण्हइ पञ्चक्रवाणं जं करणिज्जं तहिं काले ॥१२॥ पच्छा गुरुसंजोगे विशुद्धिद्वारं प्रत्या सयंगिहीयं पुणोऽवि तप्पुरओ। गुरुसक्विगत्तहेर्ड पडिवज्जइ पुवनीतीए ॥ १३ ॥ गुरुसामग्गीअभावे सम्म ख्यान स्वरूपे. पालेइ जं सयंविहियं । परमुस्सुगत्तगहियं सयमेव पुणो कुणइ विहिणा ॥ १४ ॥ केवलमिह चउभंगो जाणतो जाणगस्स पासम्मि । बीओ अयाणमाणो गिराहा जागतगसमीवे ॥१५॥ तइयम्मि जाणमाणे गिण्हइ पासे ॥ २॥ अयाणमाणस्स । चरिमे अयाणप्राणो अयाणमाणात मूलम्ति ।। १६ ।। एत्य य पढमो सुद्धो सम्मन्नाणस्स तत्थ भावाओ । विरईए नाणं चिय सुद्धीए कारणं जेणं ॥१७ ।। बीए जाणावेउं ओहेगाहारविगइमाईयं । देज्जा पच्चक्खाणं इहरा दोपहवि मुसावाओ ॥ १८॥ तइए गुरू अजाणं जेहो भाया व माउलाई वा। गुरुपूइउत्ति काउं तस्स उ पूया कया होउ ।। १९ ।। अप्पत्तियं च एयरस वज्जियं होउ कारणेणेवं । गिण्हइ पच्चक्खाणं इहरा दोसो अगीयम्मि ॥२०॥ जो पुण सयं न याणइ गिवहइ पासे अयाणमाणस्स । सो सयमंधो लग्गइ मग्गे अन्नस्स अंधस्स ॥ २१ ।। इय नाऊणं सम्मं जाणंतो जाणगस्स पासम्मि । कुज्जा पच्चक्रवाणं मोक्खफलं जेण त होइ ॥ २२॥ भणियं गहणविहाणं संखेवेणं सुयाणुसारेणं । इहि छब्बिहसुद्धिं तह चेव भणामि एयस्स ॥ २३ ॥ दा. १ । ROCESSORRC For Private and Personal Use Only
SR No.020579
Book TitlePratyakhyan Swarupam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
PublisherRushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publication Year1927
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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